'जेल में जाति देखकर काम देना गलत', कैद में जाति आधारित भेदभाव पर सख्त हुए CJI चंद्रचूड़
Supreme Court: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अंग्रेजों ने अपने समय में अपनी सुविधा के अनुसार कई जनजातियों को आपराधिक घोषित किया. स्वतंत्र भारत में उन जातियों को उसी निगाह से देखना गलत है.
Supreme Court Latest News: सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार (3 अक्टूबर 2024) को जेलों में कैदियों से जाति के आधार पर भेदभाव पर ऐतिहासिक फैसला दिया. कोर्ट ने कहा है कि जाति व्यवस्था में उच्च और निम्न मानी जाने वाली जातियों से अलग बर्ताव नहीं किया जा सकता. सभी राज्य 3 महीने में अपने जेल मैनुअल में संशोधन कर इसे सुनिश्चित करें.
सुप्रीम कोर्ट में सामाजिक कार्यकर्ता सुकन्या शांता ने याचिका दाखिल कर यह मसला उठाया था. उन्होंने यूपी, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल समेत 11 राज्यों का उदाहरण देकर बताया था कि वहां कैदियों को जातियों के हिसाब से काम दिया जाता है. उनके रहने की व्यवस्था भी जाति के मुताबिक होती है. कई राज्यों में जेल नियमावली में ही भेदभाव भरी बातें लिखी हैं. रसोई का काम उच्च जाति के कैदियों को दिया जाता है. सफाई का काम निम्न जाति के कैदियों को देते हैं. कुछ जातियों को आदतन अपराधी भी लिखा गया है.
जेल में कैदी की जाति दर्ज करने के कॉलम पर रोक
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने याचिकाकर्ता को यह अहम विषय उठाने के लिए धन्यवाद दिया. बेंच ने कहा कि संविधान सबको बराबरी का दर्जा देता है. अनुच्छेद 17 में छुआछूत पर रोक लगाई गई है. अनुच्छेद 21 गरिमा से जीने का अधिकार देता है. यह सभी प्रावधान जेलों में भी लागू हैं. कैदियों के रहने की व्यवस्था या जेल में उन्हें दिए जाने वाले काम में जातीय पहचान को कोई महत्व नहीं मिलना चाहिए. जेल में कैदी की जाति दर्ज करने का कॉलम नहीं होना चाहिए.
सीजेआई ने भीमराव अंबेडकर का किया जिक्र
कोर्ट ने कहा कि ब्रिटिश सरकार ने कुछ जनजातियों को आपराधिक घोषित किया था. स्वतंत्र भारत में इसे अब तक मान्यता देना गलत है. इसलिए, देश के किसी भी राज्य में कुछ जातियों को आदतन अपराधी मानने वाले प्रावधान आज से असंवैधानिक करार दिए जा रहे हैं. जजों ने डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को याद करते हुए कहा कि वह किसी वर्ग की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को उसके उत्पीड़न का आधार न बनाने की बात कहते थे.
केंद्रीय गृह मंत्रालय से मॉडल जेल मैनुअल बनाने को कहा
कोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से भी कहा कि वह इस फैसले की कॉपी 3 सप्ताह में सभी राज्यों को भेजे और केंद्रीय गृह मंत्रालय एक मॉडल जेल मैनुअल भी बनाए, जिसमें जातिगत भेदभाव वाला कोई प्रावधान न हो. इस मॉडल मैनुअल के हिसाब से राज्य अपने यहां की जेल नियमावली तय करें.
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