Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे को सरकार बनाने का न्योता देना सही या गलत? CJI की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच आज सुनाएगी फैसला
Maharashtra Crisis: आज सुप्रीम कोर्ट का आने वाला फैसला महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल ला सकता है. इस वक्त राज्य में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और बीजेपी की सरकार है.
Eknath Shinde Vs Uddhav Thackeray Row: महाराष्ट्र के शिंदे बनाम उद्धव विवाद पर सुप्रीम कोर्ट आज (11 मई) फैसला देने जा रहा है. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने 16 मार्च को मामले पर फैसला सुरक्षित रखा था. इससे पहले कोर्ट ने 9 दिनों तक दोनों पक्षों और राज्यपाल कार्यालय के वकीलों को सुना. सुनवाई के दौरान उद्धव कैंप ने शिंदे की बगावत और उनकी सरकार के गठन को गैरकानूनी बताया. दूसरी तरफ शिंदे खेमे ने कहा कि विधायक दल में टूट के बाद राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट का आदेश देकर सही किया था.
क्या है मामला?
2022 में शिवसेना के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में विधायकों की बगावत के बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को इस्तीफा देना पड़ा था. इसके बाद शिंदे के नेतृत्व में नई सरकार का गठन हुआ. इस पूरे घटनाक्रम के दौरान जून और जुलाई, 2022 में दाखिल कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. अगस्त में यह मामला संविधान पीठ को सौंपा गया था. चीफ जस्टिस के नेतृत्व वाली संविधान पीठ ने मामले को सुना. इस बेंच के बाकी 4 सदस्य हैं- जस्टिस एम आर शाह, कृष्णा मुरारी, हिमा कोहली और पी एस नरसिम्हा.
'आपको दोबारा बहाल कैसे कर सकते हैं?'
सुनवाई के दौरान उद्धव ठाकरे के लिए पेश अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल ने यह भी कहा था कि अगर शिंदे सरकार को मंजूरी दी गई तो यह भविष्य के लिए गलत उदाहरण बनेगा. उद्धव ठाकरे पक्ष की तरफ से पुरानी स्थिति की बहाली की मांग भी की गई. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उस व्यक्ति को दोबारा पद पर कैसे बहाल किया जा सकता है, जिसने फ्लोर टेस्ट में हिस्सा लेने की जगह पद से इस्तीफा दे दिया था?
शिंदे कैंप की जिरह
शिंदे कैंप के लिए पेश वरिष्ठ वकीलों नीरज किशन कौल और महेश जेठमलानी ने कहा कि पार्टी में टूट का कोई विषय ही नहीं है. शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ही असली शिवसेना है. अब चुनाव आयोग भी इसे स्वीकार कर चुका है. राज्यपाल ने उद्धव ठाकरे को विधानसभा में बहुमत परीक्षण के लिए कह कर सही किया था.
राज्यपाल कार्यालय की दलील
राज्यपाल कार्यालय की तरफ से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि राज्यपाल को शिवसेना के 34 विधायकों ने यह बताया था कि एकनाथ शिंदे उनके नेता हैं. साथ ही 47 विधायकों ने यह चिठ्ठी लिखी थी कि शिंदे का साथ देने के चलते उद्धव ठाकरे गुट के नेता उन्हें हिंसक धमकी दे रहे हैं. इसलिए, राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट का निर्णय लिया. यह राज्यपाल का संवैधानिक कर्तव्य था.
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई मुख्य रूप से इन सवालों पर हुई है :-
- क्या तत्कालीन डिप्टी स्पीकर इस वजह से शिंदे कैंप के विधायकों की अयोग्यता पर विचार करने में सक्षम नहीं थे कि उनके खिलाफ खुद ही पद से हटाने का प्रस्ताव लंबित था?
- क्या सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट अयोग्यता पर फैसला ले सकते हैं?
- विधायकों के खिलाफ अयोग्यता का मामला लंबित रहते क्या वह सदन की कार्यवाही में हिस्सा ले सकते हैं?
- किसी विधायक को अयोग्य करार दिए जाने की स्थिति में सदन की उस कार्यवाही को किस तरह से देखा जाएगा जिसमें उसने मामला लंबित रहने के दौरान हिस्सा लिया था?
- पार्टी के चीफ व्हिप यानी मुख्य सचेतक की नियुक्ति कौन कर सकता है? शिवसेना के तत्कालीन आलाकमान की तरफ से नियुक्त व्हिप को शिंदे कैंप ने विधायक दल में अपने बहुमत के आधार पर हटा कर क्या सही किया?
- क्या शिंदे कैंप के 40 विधायकों को दलबदल कानून के तहत किसी दूसरी पार्टी में विलय करना चाहिए था? वह दूसरी पार्टी के समर्थन से खुद सरकार नहीं बना सकते थे?
- क्या राज्यपाल ने एकनाथ शिंदे को सरकार बनाने का निमंत्रण देकर गलती की?
बदल चुकी है स्थिति
शिंदे की बगावत से लेकर अब तक महाराष्ट्र की राजनीतिक परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं. इस वक्त बीजेपी के समर्थन से शिंदे की बहुमत वाली सरकार महाराष्ट्र में है. चुनाव आयोग भी फैसला दे चुका है कि शिंदे की शिवसेना ही असली शिवसेना है. एकनाथ शिंदे सरकार को तभी खतरा हो सकता है जब संविधान पीठ यह तय कर दे कि जिस समय शिंदे और उनके विधायकों ने सरकार बनाई, उस समय वह विधानसभा की सदस्यता के अयोग्य थे.
वैसे शुरू में उद्धव गुट ने सिर्फ 16 विधायकों को अयोग्य करार देने के लिए डिप्टी स्पीकर को आवेदन दिया था. अगर उन्हें मतदान के अयोग्य माना भी जाता है, तब भी 288 सदस्यों वाली विधानसभा में 162 विधायकों के समर्थन वाली शिंदे सरकार के बहुमत पर कोई असर नहीं पड़ेगा. सुप्रीम कोर्ट अगर सिर्फ यह कहे कि राज्यपाल ने शिंदे को निमंत्रण देकर जल्दबाजी की, तब स्थिति नहीं बदलेगी. ऐसा इसलिए कि उस निमंत्रण के बाद के बाद सीएम बने शिंदे ने बहुमत साबित कर दिया था.
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