नई दिल्लीः 'To be hanged till death' यानी जब तक मौत न हो जाए, तब तक फांसी पर लटकाया जाए. मौत की सज़ा का फैसला देते वक्त जज यही बोलते हैं, क्या मौत की सज़ा देने के इस तरीके को बदला जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट इस पर विचार करने को तैयार हो गया है. कोर्ट ने आज इस बारे में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा.
कोर्ट में ऋषि मल्होत्रा नाम के वकील ने इस मसले पर याचिका दाखिल की है. उनका कहना है कि फांसी एक क्रूर और अमानवीय तरीका है. इसकी पूरी प्रक्रिया बहुत लंबी है. मौत सुनिश्चित करने के लिए फांसी के बाद भी सज़ा पाने वाले को आधे घंटे तक लटकाए रखा जाता है.
याचिका में कहा गया है कि दुनिया के कई देशों ने फांसी का इस्तेमाल बंद कर दिया है. भारत में भी ऐसा होना चाहिए. याचिकाकर्ता ने मौत के लिए इंजेक्शन देने, गोली मारने या इलेक्ट्रिक चेयर का इस्तेमाल करने जैसे तरीके अपनाने का सुझाव दिया है.
ऋषि मल्होत्रा ने आज चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच में दलील रखते हुए पुराने फैसलों का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञान कौर बनाम पंजाब मामले में शांति और सम्मान से मरने को भी जीवन के अधिकार का हिस्सा माना था. फांसी की सज़ा में इसका उल्लंघन होता है.
उन्होंने बताया कि लॉ कमीशन भी अपनी रिपोर्ट में CRPC की धारा 354(5) में संशोधन की सिफारिश कर चुका है. लेकिन सरकार ने इस पर अमल नहीं किया. गौरतलब है कि CRPC की इसी धारा में मरने तक फांसी पर लटकाए रखने की सज़ा का प्रावधान है.
सुनवाई के दौरान बेंच ने याचिकाकर्ता की तरफ से उठाए गए बिंदुओं को चर्चा के लायक माना. चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की, "इस बात पर विचार करने की ज़रूरत है कि क्या मौत के लिए कोई कम तकलीफदेह तरीका अपनाया जा सकता है. सरकार इस पर 3 हफ्ते में जवाब दे."