Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है. याचिका में समलैंगिक विवाह को भी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत लाने की मांग की गई है. जजों ने संकेत दिया कि इस मसले पर केरल समेत अलग-अलग हाई कोर्ट में लंबित याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर कर एक साथ सुना जाएगा. 


चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच के सामने 2 याचिकाएं सुनवाई के लिए लगी थीं. पहली याचिका हैदराबाद के रहने वाले गे कपल सुप्रियो चक्रबर्ती और अभय डांग की थी और दूसरी दिल्ली के पार्थ फिरोज़ मेहरोत्रा और उदय राज आनंद की. याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी, नीरज किशन कौल और मेनका गुरुस्वामी पेश हुए. 


'कानून करता है भेदभाव'


कोर्ट में इन वकीलों ने दलील दी कि स्पेशल मैरिज एक्ट में अंतर धार्मिक और अंतर जातीय विवाह को संरक्षण मिला हुआ है, लेकिन समलैंगिक जोड़ों के साथ भेदभाव किया गया है. उनका कहना था कि वह किसी धर्म या उसकी मान्यता की बात नहीं कर रहे, सिर्फ समलैंगिकों को उनका अधिकार दिलाने की बात कर रहे हैं. 


'विवाह को मिले मान्यता'


वरिष्ठ वकील रोहतगी ने कहा कि नवतेज जौहर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर किया था. उसी तरह पुट्टास्वामी मामले में निजता को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया था. अब ज़रूरी है कि समलैंगिक विवाह को भी कानूनी मान्यता दी जाए. वरिष्ठ वकील मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि इस तरह के जोड़ों के बच्चा गोद लेने वगैरह को लेकर सवाल उठाए जाते हैं. इस पर वरिष्ठ वकील नीरज किशन कौल ने कहा कि यह सभी सवाल नवतेज जौहर मामले में भी उठे थे. 


कई हाई कोर्ट में चल रही है सुनवाई


इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि केरल हाई कोर्ट अभी मामला सुन रहा है. वकीलों ने जानकारी दी कि केरल के अलावा भी कुछ और हाई कोर्ट इस मसले पर सुनवाई कर रहे हैं. केंद्र सरकार ने खुद केरल हाई कोर्ट को कहा है कि वह सभी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर करने का आवेदन देगी. इस पर जजों ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर 4 हफ्ते में जवाब देने के लिए कह दिया.


2018 में आया था ऐतिहासिक फैसला


6 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने ऐतिहासिक फैसला दिया था. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाली IPC की धारा 377 के एक हिस्से को रद्द कर दिया था. इसके चलते दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने समलैंगिक संबंध को अपराध नहीं माना जा सकता. फैसला देते वक्त कोर्ट ने यह भी कहा था, "समलैंगिक लोगों के साथ समाज का बर्ताव भेदभाव भरा रहा है. कानून ने भी उनके साथ अन्याय किया है. 


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