Supreme Court On Cast Based Jail Maanual: देशभर की जेलों में बंद कैदियों की जाति देखकर उन्हें काम दिए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (3 जनवरी) को महत्वपूर्ण कदम उठाया है. इस मामले पर एक याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल समेत 11 राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया. सुप्रीम कोर्ट में लगी इस याचिका में जेलों में जाति-आधारित भेदभाव और उन्हें अलग-अलग जातियों के आधार पर मैनुअल काम आवंटित करने पर रोक लगाने के निर्देश देने की मांग की गई थी.


सुप्रीम कोर्ट में  मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता एस मुरलीधर की दलीलों पर गौर करने के बाद इन 11 राज्यों के जेल मैनुअल पर कथित तौर पर जाति आधारित काम आवंटन पर रिपोर्ट मांगी है. 


क्या है वकील का कहना?
वरिष्ठ वकील मुरलीधर ने कहा, "जेलों में छोटी जातियों के कैदियों और आदतन अपराधियों के साथ अलग व्यवहार किया जाता है. छोटी जाति के कैदियों के साथ भेदभाव होता है और उन्हें उनकी जाति के मुताबिक काम दिया जाता है." 


इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और अन्य को नोटिस जारी करते  हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वह महाराष्ट्र के कल्याण की निवासी सुकन्या शांता की ओर से दायर जनहित याचिका में उठाए गए मुद्दों से निपटने में अदालत की सहायता करें. सॉलिसिटर जनरल ने कहा, "मैंने जाति आधारित भेदभाव के बारे में नहीं सुना है. काम का बंटवारा आमतौर पर विचाराधीन कैदियों और दोषियों पर आधारित होता है." 


इन राज्यों को जारी किया गया है नोटिस
कोर्ट के आदेश पर जिन राज्यों को नोटिस जारी किया गया है, वे उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, ओडिशा, झारखंड, केरल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र हैं. इन सभी राज्यों को नोटिस जारी करने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख चार हफ़्ते बाद मुकर्रर की है.


क्या है मामला?
राजस्थान समेत देश की कई जेलों में आज भी ब्रिटिश शासन के जेल मैनुअल के मुताबिक काम का आवंटन होता है. प्रत्येक आरोपी व्यक्ति, जो जेल में दाखिल होता है, उससे जाति पूछी जाती है. ह्यूमन राइट्स से जुड़ी एक संस्था ने दावा किया था कि निचले तबके के बंदियों को शौचालय व जेलों की सफाई जैसे काम सौंपे जाते हैं.


रिपोर्ट के मुताबिक जाति पिरामिड के निचले भाग वाले सफाई का काम करते हैं, उनसे उच्च वर्ग वाले रसोई या लीगल दस्तावेज विभाग को संभालते हैं. जबकि अमीर और प्रभावशाली कोई काम नहीं करते. ब्रिटिशकालीन मैन्युअल में बहुत कम संशोधन किए गए हैं. रिपोर्ट इस तथ्य का दावा करती है‌ कि विभिन्न राज्यों के जेल मैन्युअल अब भी इसी व्यवस्था पर चलते हैं.


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