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"फांसी में देरी उसे उम्रकैद में बदलने का आधार" : सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा को लेकर जारी किए निर्देश
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि फांसी की सजा पाने वाले कैदियों के मामले में देरी करना प्रशासनिक और न्यायिक त्रुटि है, जो सजा को उम्रकैद में बदलने का आधार बन सकती है.
Death Penalty Case: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि फांसी की सजा पाने वाले के कानूनी विकल्प खत्म हो जाने के बाद या उसकी तरफ से विकल्पों का इस्तेमाल न करने की स्थिति में सरकार और सेशंस अदालतों को देरी नहीं करनी चाहिए. सरकार या कोर्ट की तरफ से की गई देरी फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने का आधार बन सकती है. प्रशासनिक कमी के चलते सजायाफ्ता कैदी फांसी के डर के साथ जीता रहे, इसे सही नहीं कहा जा सकता.
पुणे बीपीओ केस में दोषियों की उम्रकैद बरकरार : सुप्रीम कोर्ट
2007 पुणे बीपीओ कर्मी रेप और मर्डर केस के 2 दोषियों की फांसी को उम्रकैद में बदलने वाला फैसला बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कई निर्देश जारी किए हैं. 2019 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह कहते हुए पुरुषोत्तम बोराटे और प्रदीप कोकड़े नाम के दोषियों की फांसी माफ कर दी थी कि उनकी दया याचिका के निपटारे में 2 साल का समय लगा. फांसी की सजा को हाई कोर्ट ने 35 साल कैद में रहने की सजा में बदल दिया.
बीपीओ के कॉन्ट्रेक्ट पर काम कर रहे कैब ड्राइवर बोराटे और उसके दोस्त कोकड़े ने 2007 में ऑफिस जाने के लिए कैब में बैठी 22 साल की महिला कर्मचारी के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी थी. इस मामले में सेशंस कोर्ट और हाई कोर्ट के बाद 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने भी दोनों को फांसी की सजा दी थी, लेकिन उनकी दया याचिका राज्यपाल और राष्ट्रपति के पास 2 साल लंबित रही. इसे आधार बना कर हाई कोर्ट ने उनकी फांसी रोक दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा पर निर्देश दिए
अब महाराष्ट्र सरकार की अपील खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय ओका, अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने भविष्य के लिए कई दिशानिर्देश जारी किए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि फांसी की पुष्टि होने के बाद उसमें देरी गलत है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है :-
* कैदी को मौत के डर के साथ ज़िंदा रखना जीवन के मौलिक अधिकार का हनन है। अगर ऐसा होता है तो दोषी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है।
* ऐसी स्थिति में सुप्रीम कोर्ट यह देखेगा कि क्या वाकई देर हुई है? अगर हां तो किन परिस्थितियों में ऐसा हुआ?
* राज्यपाल या राष्ट्रपति के पास दया याचिका का काफी समय तक लंबित रहना सही नहीं है
* हर राज्य का गृह विभाग या जेल विभाग कैदियों की दया याचिका का तेजी से निपटारा सुनिश्चित करने के लिए अलग प्रकोष्ठ (सेल) बनाए
* हाई कोर्ट से फांसी की पुष्टि होने के बाद सेशंस कोर्ट मामले को आगे की कार्यवाही के लिए लिस्ट करे। वह सरकार से पता करे कि क्या दोषी ने आगे अपील की है। अगर नहीं तो फांसी की तारीख तय करे
* इसी तरह सुप्रीम कोर्ट से सज़ा बरकरार रहने या दया याचिका खारिज होने के बाद ही सेशंस कोर्ट को जल्द से जल्द आगे की कार्यवाही करनी चाहिए
* डेथ वारंट जारी करने से पहले कैदी को नोटिस दिया जाए
* कैदी को डेथ वारंट मिलने और फांसी की तारीख में कम से कम 15 दिन का अंतर हो
* अगर कैदी मांग करे तो उसे मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध करवाई जाए
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