Supreme Court Issues Notice ECI: राजनीतिक पार्टियों की तरफ से अपने नाम में धार्मिक शब्दों के इस्तेमाल के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है. याचिका में कहा गया है कि धर्म के नाम पर वोट मांगना गैर-कानूनी है. ऐसे में पार्टी का नाम भी धर्म के आधार पर नहीं हो सकता. जो भी पार्टी धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल अपने नाम या चुनाव चिन्ह में करती है, उसे बदलना चाहिए. कोर्ट चुनाव आयोग को इसका निर्देश दे.


याचिकाकर्ता सैयद वसीम रिज़वी के लिए वरिष्ठ वकील गौरव भाटिया ने दलीलें रखीं. शुरू में जस्टिस एम आर शाह और कृष्ण मुरारी की बेंच याचिका से आश्वस्त नहीं थी. जजों ने पूछा कि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 के तहत किसी उम्मीदवार का धर्म के नाम पर वोट मांगना गलत है, लेकिन इसका किसी पार्टी के नाम से क्या संबंध? भाटिया ने जवाब दिया कि अगर उम्मीदवार ऐसी किसी पार्टी का है, जिसके नाम मे धर्म का इस्तेमाल किया गया है, तो यह धर्म के नाम पर वोट मांगने जैसा ही है.


भाटिया ने केरल की पार्टी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का नाम लेते हुए कहा कि इस पार्टी के सांसद और विधायक भी हैं. जिरह के दौरान वकील ने हिंदू एकता दल नाम की पार्टी का भी नाम लिया. भाटिया ने एस आर बोम्मई बनाम भारत सरकार मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया. इस फैसले में यह माना गया था कि धर्मनिरपेक्षता संविधान का मौलिक हिस्सा है. उन्होंने कहा कि किसी को भी धर्म के नाम पर वोट मांगने की इजाज़त नहीं दी इन सकती.


थोड़ी देर की चर्चा के बाद कोर्ट ने मामले में नोटिस जारी कर दिया. याचिका में सिर्फ चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को ही पक्ष बनाया गया है. ऐसे में यह नोटिस इन्हीं दोनों को जारी हुआ है. हालांकि, कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह उन पार्टियों को भी पक्ष बनाए, जिनके खिलाफ उसने राहत की मांग की है.


वसीम रिज़वी की याचिका में अखिल भारत हिंदू महासभा, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, ऑल इंडिया मजलिस एत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM), हिंदू एकता आंदोलन पार्टी, क्रिश्चियन फ्रंट, क्रिश्चियन मुन्नेत्र कड़गम, सहजधारी सिख पार्टी, इस्लाम पार्टी जैसे कई राजनीतिक दलों का उदाहरण दिया गया है. याचिकाकर्ता की तरफ से पक्ष बनाए जाने के बाद इन पार्टियों को भी कोर्ट में अपनी बात रखने का मौका मिलेगा.


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