Election Transparency: चुनाव संचालन नियमों में बदलाव के खिलाफ कांग्रेस नेता जयराम रमेश की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है. याचिका में चुनाव से जुड़े इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण को रोकने के नियम का विरोध किया गया है. कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से इस याचिका पर जवाब देने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 17 मार्च को होगी.
जयराम रमेश की याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक पार्टियों से चर्चा किए बिना चुनाव प्रक्रिया से जुड़े इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण को रोकने का नियम बना दिया गया है. इनमें सीसीटीवी और वेबकास्टिंग फुटेज, उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज शामिल हैं. यह चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवालिया निशान लगाने वाला बदलाव है.
नए नियम से कागजात निरीक्षण की व्यवस्था में बदलाव
चुनाव आयोग की सिफारिश पर केंद्रीय कानून मंत्रालय ने 20 दिसंबर को चुनाव संचालन नियम 1961 के नियम 93(2)(A) में बदलाव किया था. इस नियम में कागजात के सार्वजनिक निरीक्षण की व्यवस्था है. बदलाव के बाद निरीक्षण के लिए उपलब्ध दस्तावेज सीमित हो गए हैं. इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज का निरीक्षण कोर्ट के आदेश से ही किया जा सकेगा.
चुनाव आयोग ने मतदान की गोपनीयता के आधार पर नियम में बदलाव की सिफारिश की थी. इसमें आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के जरिए तस्वीरों और वीडियो से छेड़छाड़ कर मतदान केंद्र के अंदर के सीसीटीवी फुटेज के दुरुपयोग की आशंका की भी बात कही गई थी. इसके चलते सीसीटीवी और दूसरे वीडियो फुटेज के दुरुपयोग को रोकने के लिए नियम में यह बदलाव किया गया है.
जयराम रमेश की याचिका पर बेंच ने जारी किया नोटिस
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच के सामने याचिकाकर्ता जयराम रमेश की तरफ से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी पेश हुए. सिंघवी ने कहा कि मतदाताओं की गोपनीयता को भी नियमों में बदलाव के पीछे एक आधार बताया गया है, लेकिन सीसीटीवी फुटेज से इस बात का पता नहीं चलता कि वोटर ने किसे मतदान दिया है. ऐसे में गोपनीयता प्रभावित होने की दलील समझ से परे है. संक्षिप्त सुनवाई के बाद बेंच ने याचिका पर नोटिस जारी कर दिया.
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