Supreme Court on Hybrid Hearings: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और सभी राज्यों को नोटिस जारी कर पूछा कि फैमिली कोर्ट्स में वीडियो कांफ्रेंसिंग सुनवाई को लेकर वह क्या कर रहे हैं? यह नोटिस वकील किशन चंद जैन की जनहित याचिका (पीआईएल) पर जारी हुआ है. जानकारी के अनुसार, कोर्ट ने छह हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है.


याचिका में कहा गया कि देश भर के परिवार न्यायालयों में 11 लाख से ज़्यादा मामले पेंडिंग हैं. अदालतों में वर्चुअल सुनवाई न होने के चलते कई बार लोगों को दूसरे शहरों में जाना पड़ता है, जिससे मुकदमे के पक्षकारों, खास तौर पर महिलाओं और बच्चों पर आर्थिक और भावनात्मक बोझ पड़ता है.


चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारडीवाला और मनोज मिश्रा ने याचिकाकर्ता की दलीलें सुनने के बाद केंद्र और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया. याचिका में कहा गया कि जिन अदालतों में वर्चुअल सुनवाई की व्यवस्था है, वह लोगों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हुई. अब यह व्यवस्था परिवार न्यायालयों में भी लागू कर देनी चाहिए.


आइए, जानते हैं याचिका की मुख्य बातें:


पक्षकारों पर बोझ- याचिका में तलाक, गुजारा भत्ता, बच्चों की कस्टडी और बच्चों से मुलाक़ात के अधिकार से जुड़े मामलों का हवाला दिया गया है. कहा गया कि लंबे समय तक चलने वाले मुकदमों में शारीरिक रूप से उपस्थित रहने की ज़रूरत के कारण पक्षकार भारी बोझ का सामना कर रहे हैं. यह दबाव वनात्मक और वित्तीय, दोनों किस्म का है.


वर्चुअल सुनवाई के लाभ- याचिकाकर्ता ने बताया कि कोविड महामारी के दौरान सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में वर्चुअल सुनवाई सफल रही. यह व्यवस्था असरदार और व्यवहारिक है. पारिवारिक मुकदमों तक इसके विस्तार से न्याय प्रक्रिया में तेजी आएगी.


भौगोलिक चुनौतियां- वैवाहिक विवादों में, एक पक्ष को अक्सर शहरों या राज्यों के बीच लंबी दूरी तय करनी पड़ती है ताकि वे सुनवाई में भाग ले सकें. वर्चुअल सुनवाई इस चुनौती का किफायती और सुविधाजनक समाधान है. यह खास तौर पर उन महिलाओं को लाभ पहुंचाएगी, जिन्हें व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थिति के समय सुरक्षा चिंताओं और सामाजिक दबावों का सामना करना पड़ता है.


हाइब्रिड सुनवाई की ज़रूरत- याचिका में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि हाइब्रिड सुनवाई यानी पक्षों को व्यक्तिगत रूप से या वर्चुअल रूप से सुनवाई में भाग लेने का विकल्प देना सही रहेगा. यह मौजूदा समय की ज़रूरत है. इससे न केवल विवादों के निपटारे में तेजी आएगी बल्कि सभी के लिए न्याय तक समान पहुंच सुनिश्चित होगी.


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