'बलात्कारियों को नपुंसक करने की सजा कठोर लेकिन...', महिला सुरक्षा पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को भेजा नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जनहित याचिका की कुछ अर्जियां सही हैं और उन पर विचार किया जाएगा, लेकिन कुछ अनुरोध बहुत बर्बर और कठोर हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (16 दिसंबर, 2024) को महिलाओं, बच्चों और ट्रांसजेंडर की सुरक्षा के लिए दाखिल जनहित याचिका पर केंद्र को नोटिस भेजा है. याचिका में ऑनलाइन पोर्नोग्राफी पर बैन, पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सामाजिक उचित व्यवहार और बलात्कार के दोषियों को नपुंसक जैसे अनुरोध किए गए हैं. याचिका में समाज में महिलाओं, बच्चों और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सुरक्षित माहौल उपलब्ध कराने के लिए देशभर में दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.
न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने केंद्र और संबंधित विभागों को नोटिस जारी किया और मामले में अगली सुनवाई के लिए जनवरी का समय तय किया. बेंच ने कहा कि याचिका में उठाए गए कुछ मुद्दे सही हैं और हम उनकी सराहना भी करते हैं, लेकिन नपुंसक किए जाने जैसे अनुरोध बर्बर हैं. कोर्ट ने कहा कि ये सही है कि याचिका में उन महिलाओं के लिए भी आवाज उठाई गई है, जो असुरक्षित हैं और सड़कों पर रहने की वजह से उन्हें हर दिन ऐसी घटनाओं का सामना करना पड़ता है. याचिकाकर्ता 'सुप्रीम कोर्ट लॉयर्स एसोसिएशन' की ओर से पेश हुईं सीनियर एडवोकेट महालक्ष्मी पवनी ने कहा कि छोटे शहरों में महिलाओं के विरुद्ध यौन उत्पीड़न की कई घटनाएं हुईं जो रिपोर्ट नहीं की गईं और दबी रह गईं.
महालक्ष्मी पावनी ने कहा कि कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में महिला ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना के बाद भी यौन हिंसा की लगभग 95 घटनाएं हुई हैं, लेकिन वे सामने नहीं आ पाई हैं और न ही मीडिया ने उन घटनाओं को दिखाया. वकील ने मीडिया पर आरोप लगाया कि वह ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार है क्योंकि वो ही ट्रिगर करता है. दूसरी और तीसरी श्रेणी वाले शहरों में ऐसी घटनाओं को दबा दिया जाता है.
उन्होंने कहा कि स्कैंडिनेवियाई (उत्तरी यूरोप के) देशों की तरह ऐसे (यौन हिंसा के) अपराधियों को नपुंसक किए जाने जैसी सजा मिलनी चाहिए. पीठ ने कहा कि वह याचिका की कई अर्जियों पर विचार नहीं करेगी क्योंकि वे बर्बर और कठोर हैं, लेकिन कुछ मुद्दे ऐसे हैं जो बिल्कुल नए हैं और उनकी जांच की जरूरत है. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट में उचित व्यवहार बनाए रखने का सवाल विचारणीय मुद्दों में से एक है और इस बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है कि बसों, मेट्रो और ट्रेनों में किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए.
उन्होंने कहा कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट में क्या करें और क्या नहीं करें, इस बारे में जागरुक किया जाना चाहिए. बेंच ने कहा, 'सार्वजनिक परिवहन में उचित सामाजिक व्यवहार के बारे में न केवल सिखाया जाना चाहिए बल्कि इसे सख्ती से लागू भी किया जाना चाहिए क्योंकि एयरलाइनों से भी कुछ अनुचित घटनाएं सामने आई हैं.'
महालक्ष्मी पावनी ने बताया कि 16 दिसंबर को 2012 के भयावह निर्भया कांड की बरसी है, जिसमें 23 वर्षीय महिला फिजियोथेरेपी इंटर्न से बस में सामूहिक बलात्कार और उस पर हमला किया गया था. इस घटना में पीड़िता की बाद में मौत हो गई थी. उन्होंने कहा कि कई मामलों में दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं और कड़े कानून और सजा के प्रावधान हैं, लेकिन यह भी देखना होगा कि क्या उनका पालन हो रहा है? कोर्ट ने निर्देश दिया कि अटॉर्नी जनरल के कार्यालय के माध्यम से संबंधित मंत्रालयों और उसके विभागों को नोटिस जारी किया जाए. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, 'हम आम महिलाओं के लिए राहत के अनुरोध के आपके प्रयास की सराहना करते हैं, जिन्हें रोजमर्रा की जिंदगी में संघर्ष का सामना करना पड़ता है.' एसोसिएशन महिलाओं की सुरक्षा के लिए अखिल भारतीय स्तर पर दिशानिर्देश, सुधार और उपाय का अनुरोध कर रही है.
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