सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में पत्नी की ओर से एलिमनी के लिए रखी गई डिमांड पर नाराजगी जताई है. महिला जज जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने सख्त आपत्ति जताई कि पत्नी पति के वर्तमान स्टेटस के आधार पर समान संपत्ति का दर्जा हासिल करने के लिए इतनी बड़ी डिमांड कैसे कर सकती है. उन्होंने साफ किया कि पत्नी को उस गुजारे भत्ते का ही हक है, जिसकी वह वैवाहिक जीवन में आदी थी. अलग होने के बाद अगर पति की संपत्ति बढ़ जाती है तो पत्नी को ये अधिकार नहीं है कि बराबर दर्जा हासिल करने के लिए परमानेंट एलिमनी के नाम पर पति से इतनी बड़ी डिमांड कर दे.
लाइव लॉ के अनुसार ये सुनवाई पत्नी की उस याचिका पर हो रही थी, जिसमें पति की 5000 करोड़ रुपये की संपत्ति में से गुजारे भत्ते की मांग की गई थी. पति ने अपनी पहली पत्नी को एलिमनी के तौर पर 500 करोड़ रुपये दिए थे. हालांकि, कोर्ट ने दूसरी पत्नी को गुजारे भत्ते के तौर पर सिर्फ 12 करोड़ रुपये देने का ही निर्देश दिया है. दूसरी पत्नी ही इस मामले में याचिकाकर्ता हैं. जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस एन. के. सिंह की बेंच ने कहा, 'हमें तो आश्चर्य है कि अगर पति तलाक के बाद कंगाल हो जाए तो क्या तब भी पत्नी इस तरह की मांग करेगी?'
जस्टिस नागरत्ना ने कहा, 'हमें इस प्रवृत्ति पर गंभीर आपत्ति है कि पत्नियां पति के स्टेटस से बराबरी के लिए एलिमनी मांगती हैं. कई बार देखा गया है कि याचिकाओं में पति की संपत्ति, स्टेटस और इनकम को हाईलाइट किया जाता है और फिर उसके हिसाब से गुजारे भत्ते की मांग करते हैं. हालांकि, ऐसा सिर्फ उस केस में ही देखने को मिलता है, जिसमें पति अच्छा कमा रहा हो, लेकिन ऐसे मामलों में ये मांग नहीं दिखती हैं, जिनमें अलग होने के बाद पति की इनकम कम हो गई हो. इनकम और प्रॉपर्टी के आधार पर एलिमनी के लिए दो अलग-अलग तरह की अप्रोच नहीं की रखी जा सकती है.
कोर्ट ने कहा कि गुजारे भत्ते का कानून पत्नी को सशक्त, सोशल जस्टिस और व्यक्ति की गरिमा के लिए है. पति पर अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने का कानूनी दायित्व है. कानून के अनुसार पत्नी को उसी तरह के गुजारे-भत्ते का अधिकार है, जैसा वह वैवाहिक जीवन में रखती थी. अलग होने के बाद इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह पति के वर्तमान स्टेटस के बराबर दर्जा पाने के लिए जीवनभर के लिए एलिमनी की डिमांड करे.
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि हमें सिर्फ पति की इनकम को ही दिमाग में नहीं रखना है, बल्कि पत्नी की आय, उसकी जरूरतें, आवासीय अधिकार और अन्य फैक्टर्स का भी ध्यान रखना है इसलिए उसके भरण-पोषण का अधिकार उसकी जरूरतों के हिसाब से होना चाहिए, न कि इस पर कि पति की आय कितनी है या उन्होंने अपनी पहली पत्नी को कितनी एलिमनी दी.