रेप, POCSO और महिला उत्पीड़न पर सुप्रीम कोर्ट की जज नागरत्ना का बड़ा आदेश- सभी पीड़िताओं को मिले मुआवजा वरना...
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अदालत सेशन कोर्ट को निर्देश देती है कि वह हर उस मामले में दुष्कर्म की पीड़िताओं को मुआवजा दे, जिन्हें नहीं मिला है.
सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं और नाबालिगों से जुड़े यौन उत्पीड़न के मामलों में बेहद अहम आदेश दिया है. कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया है कि दुष्कर्म की पीड़िताओं को जल्द से जल्द मुआवजा दें. सीआरपीसी के तहत पीड़ितों को मुआवजा दिया जाना चाहिए. कोर्ट ने जिला और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों को निर्देशों का तेजी से क्रियान्वयन करने का आदेश दिया है ताकि ऐसे मामलों में पीड़िताओं को जल्द से जल्द मुआवजा मिल सके.
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस पंकज मित्थल बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) के तहत दुष्कर्म दोषी की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस दौरान जब बेंच को बताया गया कि सेशन कोर्ट ने फैसला सुनाते वक्त पीड़िता के लिए मुआवजे का निर्देश नहीं दिया तो जस्टिस नागरत्ना ने नाराजगी जताई और इसे बड़ी चूक बताया. उन्होंने कहा कि सीआरपीसी के सेक्शन 357(A), जो अब भारतीय न्याय समाज संहिता के सेक्शन 396 से बदल चुका है, के तहत दुष्कर्म के पीड़ित को मुआवजा दिया जाना चाहिए. कोर्ट ने सभी ट्रायल और जिला अदालतों को ऐसे मामलों में पीड़िताओं को मुआवजा देने का निर्देश दिया.
4 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट का फैसला सार्वजनिक किया गया. जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अदालत सेशन कोर्ट को निर्देश देती है कि वह हर उस मामले में दुष्कर्म की पीड़िताओं को मुआवजा दे, जिन्हें नहीं मिला है.
कोर्ट सैबाज नूरमोहम्मद शेख की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसे साल 2020 में महाराष्ट्र में एक 13 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म का दोषी ठहराया गया था. कोर्ट को बताया गया कि उस वक्त ट्रायल कोर्ट ने पीड़िता के मुआवजे का निर्देश नहीं दिया था. जस्टिस नागरत्ना ने इसे सेशन कोर्ट की भारी चूक बताया और बॉम्ब हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वह पीड़िता के मामले को देखे और उसको मुआवजा दिया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में आगे कहा कि यह निर्देश डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विसेज ऑथॉरिटी (DLSA) या स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (SLSA) को भी दिया जाना चाहिए. कोर्ट ने रजिस्ट्री को सभी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को एक आदेश सर्कुलेट करने का निर्देश दिया है, जिसमें यह आदेश सभी जिला और सेशन अदालतों को भेजे जाने का भी आग्रह किया गया है. इस नोटिस में रेप पीड़िताओं को जल्द से जल्द मुआवजा मुहैया कराया जाना सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है.
नूरमोहम्मद सुप्रीम कोर्ट से पहले बॉम्बे हाईकोर्ट में जमानत के लिए गया था, लेकिन इसी साल 14 मार्च को उसकी याचिका खारिज कर दी गई. नूरमोहमम्मद शेख को कोर्ट ने कुल 30 साल जेल की सजा सुनाई है. 20 साल की सजा आईपीसी के सेक्शन 376डी और 10 साल की सजा पोक्सो एक्ट के सेक्शन 4 के तहत सुनाई गई है.
कोर्ट ने अभियुक्त को यह कहते हुए जमानत दे दी कि उसने अपनी आधे से ज्यादा सजा काट ली है और हाईकोर्ट की ओर से सजा बढ़ाने की कोई संभावना नहीं है. कोर्ट ने सत्र अदालत द्वारा निर्धारित शर्तों के तहत जमानत दी है. राज्य सरकार ने जमानत देने का विरोध किया, लेकिन सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े ने आरोपियों को धारा 376डी (गैंगरेप) और पोक्सो सेक्शन के तहत दोषी ठहराने के ट्रायल कोर्ट के आदेश में खामी बताई. सुप्रीम कोर्ट को यह भी पता चला कि दूसरे आरोपी बेल पर बाहर हैं और दोषसिद्धी को चुनौती देने वाली नूरमोहम्मद की याचिका 2020 से हाईकोर्ट में लंबित हैं और उस पर जल्द सुनवाई की संभावना नहीं है.
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