सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा है कि न्यायिक शक्ति का स्वतंत्र प्रयोग न सिर्फ न्यायाधीश का विशेषाधिकार है, बल्कि यह उनका कर्तव्य भी है. उन्होंने कहा कि इसलिए यह जरूरी है कि जज कानून की अपनी समझ और अपनी अंतरात्मा के अनुसार मामलों पर निर्णय लें और अन्य विचारों से प्रभावित न हों.


जस्टिस एस नटराजन शताब्दी स्मृति व्याख्यान में जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अंततः जजों का दृढ़ विश्वास, साहस और स्वतंत्रता ही अदालत के समक्ष मामलों का फैसला करती है.


उन्होंने कहा, 'अदालत व्यवस्था के भीतर न्यायिक स्वतंत्रता के पहलू से, अलग-अलग राय या असहमतिपूर्ण राय को न्यायाधीशों की पारस्परिक स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाना चाहिए, अर्थात एक न्यायाधीश की अन्य न्यायाधीशों से स्वतंत्रता. यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सबसे प्रबुद्ध रूप है,'


जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि उन्होंने और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने संवैधानिक पीठ के मामलों पर असहमति जताई थी. जस्टिस बीवी नागरत्ना का व्याख्यान 'भारतीय संविधान के तहत नियंत्रण और संतुलन पर एक नजर' विषय पर था.


उन्होंने यह भी कहा कि केवल एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका ही न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्ति का प्रभावी ढंग से प्रयोग कर सकती है. जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता वह सीमा है, जिस तक एक न्यायाधीश कानून की अपनी व्याख्या के अनुरूप मामलों का फैसला करता है, कभी-कभी, दूसरों की सोच या इच्छा के विपरीत.


जस्टिस नटराजन (उच्चतम न्यायालय के पूर्व जज) के बारे में जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि उन्होंने अपने निर्णयों में तथा उन चौदह संविधान पीठों में अपने योगदान के माध्यम से अपनी कानूनी सूझबूझ तथा गहन ज्ञान का प्रदर्शन किया, जिनके वे सदस्य थे.


उन्होंने कहा कि न्याय के साधन के रूप में कानून के प्रति न्यायमूर्ति नटराजन की प्रतिबद्धता और संविधान के प्रति सम्मान बेगम सुबानू उर्फ ​​सायरा बानो तथा अन्य बनाम एएम अब्दुल गफूर, (1987) मामले में उनके निर्णय में झलकता है.


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