Jallikattu: किसी जानवर का इस्तेमाल लोगों के मनोरंजन के लिए किया जा सकता है? जल्लीकट्टू पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा
Jallikattu Game कोर्ट ने पूछा देशी नस्ल के सांडों के बचाव के लिए जल्लीकट्टू का आयोजन कैसे जरूरी है. बेंच ने इस दावे का समर्थन करने वाले सबूतों के बारे में भी जानना चाहा कि यह एक सांस्कृतिक प्रथा है.
Tamil Nadu: तमिलनाडु में जल्लीकट्टू को अनुमति देने वाले कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (1 दिसंबर) को राज्य सरकार से पूछा कि, देशी नस्ल के सांडों के बचाव के लिए सांडों को कंट्रोल में करने वाला खेल कैसे जरूरी है. जल्लीकट्टू को एरुथाझुवुथल के रूप में भी जाना जाता है. यह तमिलनाडु में पोंगल फेस्टिवल के दौरान खेले जाने वाला खेल है, जिसमें सांडो को कंट्रोल किया जाता है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस केएम जोसेफ के नेतृत्व वाली पांच-जजों की बेंच ने राज्य से यह भी पूछा कि क्या किसी जानवर का इस्तेमाल मनुष्यों के मनोरंजन के लिए किया जा सकता है जैसा कि जल्लीकट्टू में किया जाता है.
जल्लीकट्टू अपने आप में मनोरंजन नहीं
तमिलनाडु की ओर से पेश सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने शीर्ष अदालत से कहा, "जल्लीकट्टू अपने आप में मनोरंजन नहीं है और जो व्यक्ति अपने सांड का प्रदर्शन करता है वह अपने जानवर की उचित देखभाल करने के साथ ही उसके प्रति करुणा का भाव रखता है." सुप्रीम कोर्ट के जज ने इस पर पूछा, 'उन्हें इससे क्या मिलता है? इस सवाल पर सीनियर वकील ने जवाब देते हुए कहा, "बाजार में सांड की कीमत बढ़ जाती है."
खेल के मनोरंजन के बारे में कोर्ट की राय
तमिलनाडु की ओर से पेश सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने जब कहा कि खेल मनोरंजन के बारे में नहीं है, तो बेंच ने पूछा, 'मनोरंजन नहीं? फिर लोग वहां क्यों एकत्र होते हैं?' उन्होंने जवाब दिया कि यह सांड की शक्ति को प्रदर्शित करता है और यह भी कि इसे कैसे पाला गया है तथा यह कितना मजबूत है.
गुरुवार को सुनवाई दिन भर चली. सुनवाई के दौरान बेंच ने पूछा कि मुद्दा यह है कि देशी नस्ल के सांडों के बचाव के लिए जल्लीकट्टू का आयोजन कैसे जरूरी है. बेंच ने इस दावे का समर्थन करने वाले सबूतों के बारे में भी जानना चाहा कि यह एक सांस्कृतिक प्रथा है. हालांकि, सुनवाई बेनतीजा रही और यह छह दिसंबर को भी जारी रहेगी.