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'माई लॉर्ड' कहने पर क्यों नाराज हुए सुप्रीम कोर्ट के जज? वकील को अपनी सैलरी देने की करने लगे बात
Supreme Court: भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) ने 2006 में एक प्रस्ताव पारित सुप्रीम कोर्ट में जजों को ‘माई लॉर्ड’ और ‘योर लॉर्डशिप्स’ कहने पर रोक लगाई थी.
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Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट में जब भी सुनवाई होती है यानी न्यायिक कार्यवाही की जाती है, तो वकीलों के जरिए जज को दो खास शब्दों से संबोधित किया जाता है. ये शब्द हैं ‘माई लॉर्ड’ और ‘योर लॉर्डशिप्स’. अंग्रेजों के जमाने से ही अदालत में जजों को संबोधित करने के लिए इन शब्दों का इस्तेमाल किया जाता रहा है. आजादी के बाद भी इसमें किसी तरह का कोई बदलाव नहीं हुआ और पिछले 7 दशक से इन दोनों ही शब्दों का इस्तेमाल हो रहा है.
हालांकि, अब ‘माई लॉर्ड’ और ‘योर लॉर्डशिप्स’ शब्द पर आपत्ति जताई गई है. ये आपत्ति और किसी ने नहीं, बल्कि खुद सुप्रीम कोर्ट के जज ने जताई है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के एक वकील ने न्यायिक कार्यवाही के दौरान वकीलों के जरिए बार-बार ‘माई लॉर्ड’ और ‘योर लॉर्डशिप्स’ कहे जाने पर नाखुशी जताई. वह इस बात से इतना ज्यादा नाराज हुए कि उन्होंने यहां तक कह दिया कि अगर वकील ऐसा कहना बंद कर देंगे, तो उन्हें वह अपनी आधी सैलरी देने के लिए भी तैयार हैं.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, जस्टिस ए.एस. बोपन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ में शामिल जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा एक नियमित मामले की सुनवाई कर रहे थे. इस दौरान जस्टिस नरसिम्हा ने एक वरिष्ठ अधिवक्ता से कहा, 'आप कितनी बार 'माई लॉर्ड्स' कहेंगे? यदि आप यह कहना बंद कर देंगे, तो मैं आपको अपना आधा वेतन दे दूंगा.' ‘माई लॉर्ड’ या ‘योर लॉर्डशिप’ कहने की इस प्रथा का विरोध करने वाले अक्सर इसे औपनिवेशिक युग का अवशेष और गुलामी की निशानी कहते हैं.
जस्टिस नरसिम्हा ने कहा, ‘आप इसके बजाय 'सर' का इस्तेमाल क्यों नहीं करते?’ उन्होंने कहा कि अन्यथा वह गिनना शुरू कर देंगे कि वरिष्ठ अधिवक्ता ने कितनी बार ‘माई लॉर्ड्स’ शब्द का उच्चारण किया. भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) ने 2006 में एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें फैसला लिया गया था कि कोई भी वकील न्यायाधीशों को ‘माई लॉर्ड’ और ‘योर लॉर्डशिप’ कहकर संबोधित नहीं करेगा, लेकिन व्यवहार में इसका पालन नहीं किया जा सका.
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