चुनावी बॉन्ड पर यह हमारी जीत- SC के फैसले पर याचिकाकर्ता, प्रशांत भूषण बोले- अब सब कुछ सार्वजनिक करना होगा
Supreme Court Hearing on Electoral Bonds: चुनावी बॉन्ड को लेकर काफी राजनीति भी देखने को मिली थी. सरकार 2018 में चुनावी बॉन्ड स्कीम लेकर आई थी.
Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (15 फरवरी) को चुनावी बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार दिया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि अनाम चुनावी बॉन्ड संविधान प्रदत्त सूचना के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है. नागरिकों की निजता के मौलिक अधिकार में राजनीतिक गोपनीयता, संबद्धता का अधिकार भी शामिल है. चुनावी बॉन्ड पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर याचिकाकर्ता ने खुशी जताई है. उन्होंने अदालत के फैसले को जीत बताया है.
2018 में सरकार राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता के लिए चुनावी बॉन्ड स्कीम लेकर आई थी. इसके खिलाफ 'एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म' (एडीआर), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्किस्ट) और कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. शीर्ष अदालत ने गुरुवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि अनाम चुनावी बॉन्ड संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. इस तरह इस असंवैधानिक करार दिया गया.
अब सब कुछ सार्वजनिक करना होगा: प्रशांत भूषण
चुनावी बॉन्ड स्कीम में याचिकाकर्ता की तरफ से अदालत में पेश होने वाले वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताई है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से आज अहम फैसला आया है. चुनावी बॉन्ड लोगों के सूचना के अधिकार के खिलाफ था. बॉन्ड के बारे में जानना जनता का मौलिक अधिकार है. हर डिटेल्स वेबसाइट पर डालनी होगी. अब चीज सार्वजनिक करनी होगी. उन्होंने कहा कि इस फैसले से हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूत होगी.
#WATCH | Advocate Prashant Bhushan says "The Supreme Court has struck down the Electoral Bond scheme and all the provisions that were made to bring it into effect have been struck down. They have held that this violates the fundamental right to information of citizens to know… https://t.co/p0jF21bOAH pic.twitter.com/wizF38Lvfj
— ANI (@ANI) February 15, 2024
चुनावी बॉन्ड होना चाहिए पारदर्शी: याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ता और कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा, 'अदालत ने कहा है कि चुनावी बॉन्ड पारदर्शी होना चाहिए. आरटीआई हर नागरिक का अधिकार है. कितना पैसा और कौन लोग इसे किस पार्टी को दे रहे हैं. इसका खुलासा होना चाहिए.'
उन्होंने कहा, '2018 में जब इस चुनावी बांड योजना का प्रस्ताव रखा गया था तो इस योजना में कहा गया था कि आप बैंक से बांड खरीद सकते हैं. जो पैसा आप पार्टी को देना चाहते हैं, उसे बॉन्ड के रूप में दे सकते हैं. ऐसा करने पर आपका नाम उजागर नहीं किया जाएगा. ऐसा करना सूचना के अधिकार के विरुद्ध है और इसका खुलासा किया जाना चाहिए.'
जया ठाकुर ने कहा, 'इसलिए मैंने अदालत में याचिका दायर की और कहा कि चुनावी बॉन्ड पारदर्शी होना चाहिए. उन लोगों के नाम और उनके जरिए दिए गए पैसे की जानकारी सामने आनी चाहिए, जो किसी पार्टी को दिया जा रहा है.'
सुप्रीम कोर्ट में किन बातों पर हुई बहस?
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का फैसला एकमत का है. हालांकि, दो फैसले हैं, लेकिन निष्कर्ष एक ही रहा है. सुप्रीम कोर्ट में इस बात पर बहस हुई कि क्या चंदे के बारे में जानना लोगों के सूचना के अधिकार के तहत आता है, क्या अनियंत्रित चंदा होना चाहिए? अदालत में कहा गया कि मतदाताओं को वह बातें जानने का अधिकार है जो उनके मतदान पर असर डालती हैं.
सरकार ने इस योजना से काले धन पर रोक की दलील दी, लेकिन इस दलील से लोगों के जानने के अधिकार पर असर नहीं पड़ता. सरकार ने दानदाता की गोपनीयता रखने को जरूरी बताया, लेकिन अदालत इससे आश्वसत नहीं हुई.
अदालत ने कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना अनुच्छेद 19 1(a) के तहत हासिल जानने के मौलिक अधिकार का हनन करती है. हालांकि, हर चंदा सरकारी नीतियों को प्रभावित करने के लिए नहीं होता. राजनीतिक लगाव के चलते भी लोग चंदा देते हैं. इसको सार्वजनिक करना सही नहीं होगा. इसलिए छोटे चंदे की जानकारी सार्वजनिक करना गलत होगा. किसी व्यक्ति का राजनीतिक झुकाव निजता के अधिकार के तहत आता है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इनकम टैक्स एक्ट में 2017 में किया गया बदलाव (बड़े चंदे को भी गोपनीय रखना) असंवैधानिक है. जनप्रतिनिधित्व कानून में 2017 में हुआ बदलाव भी असंवैधानिक है, कंपनी एक्ट में हुआ बदलाव भी असंवैधानिक है. अदालत ने कहा कि लेन-देन के उद्देश्य से दिए गए चंदे की जानकारी भी इन संशोधनों के चलते छिपती है. कंपनी एक्ट की धारा 182 में हुआ बदलाव कॉरपरेट कंपनियों को राजनीति में दखल की अनुमति देता है.
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