नई दिल्ली: अनुसूचित जाति/जनजाति उत्पीड़न एक्ट के तहत अब तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी. सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश दिया है. साथ ही, कोर्ट ने इस एक्ट के तहत आने वाली शिकायतों पर शुरुआती जांच के बाद ही मामला दर्ज करने का भी आदेश दिया है.


ये हैं सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अहम बिंदु 


अगर किसी के खिलाफ एससी/एसटी उत्पीड़न का मामला दर्ज होता है, तो वो अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकेगा. अगर कोर्ट को पहली नज़र में लगता है कि मामला आधारहीन है या गलत नीयत से दर्ज कराया गया है, तो वो अग्रिम जमानत दे सकता है.


सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग की आशंका के मद्देनजर उनकी गिरफ्तारी से पहले उनके विभाग के सक्षम अधिकारी की मंज़ूरी ज़रूरी होगी. बाकी लोगों को गिरफ्तार करने के लिए ज़िले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) की इजाज़त ज़रूरी होगी


इस एक्ट के तहत शिकायत मिलने पर DSP स्तर के अधिकारी प्राथमिक जांच करेंगे. वो ये देखेंगे कि मामला वाकई बनता है या सिर्फ फंसाने की नीयत से शिकायत की गई है. इसके बाद ही मुकदमा दर्ज होगा


क्या था मामला


मामला महाराष्ट्र का था. एक कॉलेज के प्रधानाध्यापक और विभाग अध्यक्ष ने एक कर्मचारी के कामकाज को लेकर सर्विस रिकॉर्ड में कुछ प्रतिकूल टिप्पणी की. कर्मचारी अनुसूचित जाति से था. उसने दोनों के खिलाफ दलित उत्पीड़न का मामला दर्ज करवा दिया.


चूंकि, विभागीय काम की वजह से मुकदमा दर्ज हुआ था, इसलिए पुलिस ने कार्रवाई के लिए महाराष्ट्र के डायरेक्टर ऑफ टेक्निकल एजुकेशन से मंज़ूरी मांगी. उन्होंने मंज़ूरी से मना कर दिया. इससे नाराज कर्मचारी ने डायरेक्टर ऑफ टेक्निकल एजुकेशन के खिलाफ दलित उत्पीड़न का मामला दर्ज करवा दिया.


डायरेक्टर ने हाई कोर्ट से मुकदमा रद्द करने की मांग की. हाई कोर्ट ने माना कि उन्होंने सिर्फ अपना आधिकारिक काम किया था. लेकिन मुकदमा रद्द करने से ये कह के मना कर दिया कि इससे समाज के वंचित तबकों को गलत संदेश जाएगा. आज सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके गोयल और युयु ललित ने न सिर्फ मुकदमा रद्द किया बल्कि एक ऐतिहासिक फैसला भी दे दिया.