Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अभय ओका ने कानूनी बिरादरी के लोगों यानी वकीलों-जजों को सलाह दी है कि उन्हें पूजा-पाठ से बचना चाहिए. जस्टिस अभय ओका का कहना है कि कानूनी जगत में शामिल लोगों को किसी भी काम की शुरुआत संविधान की प्रति के सामने झुककर करनी चाहिए. जस्टिस ओका महाराष्ट्र के पिंपरी-चिंचवाड़ में रविवार (3 मार्च) को एक नए कोर्ट बिल्डिंग के भूमि पूजन समारोह के दौरान ये बातें कहीं. 


वहीं, जिस वक्त जस्टिस ओका वकीलों-जजों से पूजा-पाठ की जगह संविधान के सामने सिर झुकाने को कह रहे थे. उस वक्त सुप्रीम कोर्ट के एक और अन्य जज जस्टिस भूषण आर गवई भी वहां मौजूद थे. जस्टिस गवई ने बिल्डिंग के समारोह का नेतृत्व किया. कार्यक्रम के दौरान जस्टिस अभय ओका ने कहा, 'संविधान को अपनाए हुए 75 साल पूरे हो चुके हैं, इसलिए हमें सम्मान दिखाने और इसके मूल्यों को अपनाने के लिए इस प्रथा की शुरुआत करनी चाहिए.'


जस्टिस ओका ने क्या कहा? 


हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, भूमि पूजन समारोह में शामिल होने वाले सुप्रीम कोर्ट जस्टिस ओका ने कहा, 'इस साल 26 नवंबर को हम बाबा साहब अंबेडकर के जरिए दिए गए संविधान को अपनाने के 75 वर्ष पूरा करेंगे. मुझे हमेशा से लगता है कि हमारे संविधान की प्रस्तावना में दो बेहद जरूरी शब्द हैं, एक धर्मनिरपेक्ष और दूसरा लोकतंत्र.' उन्होंने आगे कहा, 'कुछ लोग कह सकते हैं कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ सर्व धर्म समभाव है, लेकिन मुझे हमेशा लगता है कि न्यायिक प्रणाली का मूल संविधान है.'


जस्टिस ओका ने कहा, 'इसलिए कई बार जजों को भी अप्रिय बातें कहनी पड़ती हैं. मैं कहना चाहता हूं कि अब हमें न्यायपालिका से जुड़े हुए किसी भी कार्यक्रम के दौरान पूजा-पाठ या दीप जलाने जैसे अनुष्ठानों को बंद करना होगा. इसके बजाय हमें संविधान की प्रस्तावना रखनी चाहिए और किसी भी कार्यक्रम को शुरू करने के लिए उसके सामने झुकना चाहिए.'


सुप्रीम कोर्ट जस्टिस ने आगे कहा, 'हमें इस नई चीज को शुरू करने की जरूरत है, ताकि अपने संविधान और उसके मूल्यों के सम्मान को दिखाया जा सके. कर्नाटक में अपने कार्यकाल के दौरान मैंने ऐसे धार्मिक अनुष्ठानों को रोकने की कोशिश की थी, लेकिन मैं इसे पूरी तरह से नहीं रोक पाया था.' उन्होंने कहा, 'हालांकि, मैं इसे किसी तरह से कम करने में कामयाब जरूर रहा.'


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