सरकार और न्यायपालिका के बीच टकराव खत्म, केएम जोसफ समेत तीन SC के जस्टिस नियुक्त
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाले कॉलेजियम ने इस साल 10 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के लिए जस्टिस जोसफ के नाम की सिफारिश की थी. सरकार ने वरिष्ठता का हवाला देते हुए 30 अप्रैल को सिफारिश को पुनर्विचार के लिए लौटा दिया था.
नई दिल्ली: उत्तराखंड हाईकोर्ट के जस्टिस केएम जोसेफ की नियुक्ति पर केंद्र सरकार और न्यायपालिका पर जारी कथित टकराव का अंत हो गया है. आज जस्टिस जोसेफ समेत तीन हाई कोर्ट के जस्टिस को सुप्रीम कोर्ट का जस्टिस नियुक्त किया गया. इसी के साथ शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की कुल संख्या 25 हो गई.
उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ, मद्रास हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस इंदिरा बनर्जी और ओडिशा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस विनीत सरन की शीर्ष अदालत में नियुक्ति की घोषणा से जुड़ी अधिसूचना आज जारी की गयी. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कल रात उनकी नियुक्तियों के वारंट पर हस्ताक्षर किए.
जस्टिस बनर्जी सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में आठवीं महिला न्यायाधीश हैं. उन्हें पांच फरवरी, 2002 को कलकत्ता हाईकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था और आठ अगस्त, 2016 को उनका दिल्ली हाईकोर्ट में तबादला कर दिया गया था.
उन्हें 5 अप्रैल, 2017 को पदोन्नत कर मद्रास हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया और तब से वह इसी पद पर काम कर रही हैं. जस्टिस सरन को 14 फरवरी, 2002 को इलाहाबाद हाई कोर्ट में न्यायाधीश (जस्टिस) नियुक्त किया गया था और 16 फरवरी, 2015 को उनका कर्नाटक हाईकोर्ट में तबादला कर दिया गया था.
जस्टिस सरन को 26 फरवरी, 2016 को ओडिशा हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया था और वह तब से इसी पद पर काम कर रहे हैं. वह हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की वरिष्ठता के क्रम में पांचवें स्थान पर आते हैं.
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चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाले कॉलेजियम ने इस साल 10 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के लिए जस्टिस जोसफ के नाम की सिफारिश की थी. सरकार ने वरिष्ठता का हवाला देते हुए 30 अप्रैल को सिफारिश को पुनर्विचार के लिए लौटा दिया था.
कार्यपालिका ने यह भी कहा था कि इससे कई हाई कोर्ट का प्रतिनिधित्व नहीं होगा और जस्टिस जोसेफ की पदोन्नति क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के सिद्धांत के खिलाफ होगी. उनका मूल हाई कोर्ट केरल हाई कोर्ट है. जस्टिस जोसफ ने 2016 में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को निरस्त कर दिया था. हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करने के बाद वहां राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला किया गया था.
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