Supreme Court: नए साल में सुप्रीम कोर्ट कई बड़े फैसले देने जा रहा है. इनमें 2016 में हुई नोटबंदी की वैधता, मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए निष्पक्ष कमिटी बनाने की मांग, तमिलनाडु में सांडों को काबू करने खेल- जल्लीकट्टू और जम्मू-कश्मीर में सीटों के परिसीमन जैसे कई मुद्दे शामिल हैं. इन सभी मामलों पर नवंबर या दिसंबर के महीने में फैसला सुरक्षित रखा गया था. इनमें से नोटबंदी पर फैसला 2 जनवरी को आने जारहा है.


2016 में हुई नोटबंदी को गलत बताने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 7 दिसंबर को सुनवाई पूरी कर ली थी. फैसला सुरक्षित रखते समय कोर्ट ने केंद्र सरकार और रिज़र्व बैंक को नोटबंदी के फैसले से जुड़ी प्रक्रिया के दस्तावेज सौंपने को कहा था. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि बिना उचित प्रक्रिया का पालन किए अचानक 8 दिसंबर 2016 को ऐलान कर दिया कि 500 और 2000 के पुराने नोट प्रचलन से बाहर कर दिए गए हैं. 


नोटबंदी को लेकर SC में क्या बोली थी सरकार?
इसके जवाब में सरकार ने कहा था यह टैक्स चोरी रोकने और काले धन पर लगाम लगाने के लिए लागू की गई सोची-समझी योजना थी. नकली नोटों की समस्या से निपटना और आतंकवादियों की फंडिंग को रोकना भी इसका मकसद था. 
नोटबंदी की सिफारिश रिजर्व बैंक ने की थी. इसे काफी चर्चा और तैयारी के बाद लागू किया गया था. रिज़र्व बैंक के लिए पेश वकील ने कहा कि यह एक आर्थिक निर्णय था. इसकी कोर्ट में समीक्षा नहीं हो सकती.


सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में 58 याचिकाएं दाखिल हुई थीं. जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने 24 नवंबर को मामले पर विस्तृत सुनवाई शुरू की थी. जस्टिस नज़ीर के अलावा संविधान पीठ के अन्य 4 सदस्य हैं- जस्टिस बी आर. गवई, ए. एस. बोपन्ना, वी. रामासुब्रमण्यम और बी. वी  नागरत्ना.


जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों पर फैसला
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों के परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट जल्द ही फैसला देगा. 1 दिसंबर को यह फैसला सुरक्षित रखा गया था. श्रीनगर के रहने वाले हाजी अब्दुल गनी खान और मोहम्मद अयूब मट्टू की याचिकाओं में कहा गया है कि परिसीमन में सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है. 


केंद्र सरकार, जम्मू-कश्मीर प्रशासन और चुनाव आयोग ने इस दलील को गलत बताया है. कोर्ट यह साफ कर चुका है कि यह सुनवाई सिर्फ परिसीमन पर होगी. जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने से जुड़े मसले पर विचार नहीं किया जाएगा.


चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का मसला
मुख्य चुनाव आयुक्त और 2 चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में ज़्यादा पारदर्शिता लाने की मांग पर भी सुप्रीम कोर्ट को फैसला देना है. याचिका में मांग की गई है कि चुनाव आयुक्त का चयन चीफ जस्टिस, पीएम और नेता विपक्ष की कमिटी को करना चाहिए.


इस बड़े संवैधानिक पद पर सीधे सरकार की तरफ से नियुक्ति सही नहीं है. जस्टिस के एम जोसफ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने 4 दिन तक चली सुनवाई 24 नवंबर को पूरी की थी. बेंच के बाकी 4 सदस्य हैं- जस्टिस अजय रस्तोगी, ऋषिकेश रॉय, अनिरुद्ध बोस और सी टी रविकुमार. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर बैठा व्यक्ति ऐसा होना चाहिए जो किसी से भी प्रभावित हुए बिना अपना काम कर सके.


नेताओं की बेतुकी बयानबाजी का सवाल
क्या ज़िम्मेदार पद पर बैठे लोगों को बेतुकी बयानबाज़ी से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट को दिशानिर्देश बनाने चाहिए? कोर्ट की एक संविधान पीठ ने इस पहलू पर आदेश सुरक्षित रखा हुआ है. 


2016 में बुलंदशहर गैंगरेप मामले में यूपी के तत्कालीन मंत्री आजम खान की बयानबाज़ी के बाद इस मामले की शुरुआत हुई थी. तब यह सवाल उठा था कि आपराधिक मामले की जांच को प्रभावित होने से बचाने के लिए मंत्रियों/अफसरों को उस पर बेवजह टिप्पणी करने से रोकना चाहिए. अगर संविधान पीठ यह मानती है कि उसे दिशानिर्देश बनाने चाहिए, तो मामले पर आगे विस्तृत सुनवाई होगी.


क्या मिलेगी जल्लीकट्टू को अनुमति?
तमिलनाडु के जल्लीकट्टू (सांडों को काबू में करना), कर्नाटक के कंबाला (भैंसे की दौड़) और महाराष्ट्र के बैलगाड़ी दौड़ जैसे पारंपरिक खेलों को अनुमति पर सुप्रीम कोर्ट को फैसला देना है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इन खेलों में पशुओं के साथ क्रूरता होती है. 


पशु क्रूरता निरोधक कानून एक केंद्रीय कानून है. लेकिन राज्यों ने संस्कृति के संरक्षण के नाम पर अपने यहां कानून में कुछ बदलाव किए हैं. इन्हें निरस्त किया जाना चाहिए. इस मामले में मुख्य रूप से तमिलनाडु सरकार ने बहस की. राज्य सरकार ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 29 के तहत संस्कृति के पालन को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया है. जानवरों के साथ क्रूरता की दलील गलत है. जल्लीकट्टू के चलते स्थानीय नस्ल के सांडों का संरक्षण हो पा रहा है.


मुकदमे में कब तक जोड़े जा सकते हैं आरोपी
सुप्रीम कोर्ट को आपराधिक मुकदमों पर भी एक अहम आदेश देना है. इस फैसले में निचली अदालत के जज को मुकदमे में नए आरोपी जोड़ने का अधिकार देने वाली सीआरपीसी की धारा 319 की व्याख्या की जानी है. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ को यह तय करना है कि क्या आपराधिक मुकदमे में आरोपियों को दोषी ठहराए जाने के बाद भी किसी नए व्यक्ति को आरोपी के तौर पर समन भेजा जा सकता है?


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