नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह सरकारी परियोजनाओं के लिए पेड़ काटे जाने को लेकर दिशा-निर्देश बनाएगा. कोर्ट ने कहा, "यह तय किया जाना जरूरी है कि कितनी उम्र के पेड़ों को बिल्कुल नहीं काटा जा सकता है. यह भी तय करना होगा कि किस तरह की नस्ल के पेड़ हैं जिनकी पर्यावरण के लिए उपयोगिता को देखते हुए उन्हें नहीं काटा जाना चाहिए. बाकी पेड़ों को भी बहुत जरूरी स्थिति में ही कांटा जाना चाहिए." कोर्ट ने कहा कि काटे गए पेड़ों का मूल्यांकन कर उनकी लागत परियोजना की लागत में जोड़ी जानी चाहिए.


एक पेड़ की कीमत 75 लाख!


तीन फरवरी को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गठित एक कमिटी ने बताया था कि एक पेड़ साल भर में 75 हज़ार रुपए का ऑक्सीजन और खाद पैदा करता है. इस लिहाज से पुराने और मजबूत पेड़ों की कीमत 75 लाख या उससे ज़्यादा हो सकती है. कोर्ट ने तब कहा था कि वह कमिटी की रिपोर्ट और दूसरे तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सरकारी परियोजनाओं के लिए पेड़ों को काटने पर प्रोटोकॉल तैयार करेगा.


बंगाल की सड़क परियोजना को चुनौती


मामला पश्चिम बंगाल में सेतु भारतमाला परियोजना के तहत 5 रेलवे ओवरब्रिज के निर्माण का है. परियोजना के लिए 356 पेड़ काटे जाने हैं. एसोसिएशन फ़ॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स नाम की संस्था ने वकील प्रशांत भूषण के ज़रिए इसका विरोध करते हुए याचिका दाखिल की है.


नेशनल हाईवे 112 को रेलवे क्रॉसिंग मुक्त करने के लिए बन रहे इन ओवरब्रिजों के निर्माण का विरोध करते हुए एनजीओ ने कहा है कि जो पेड़ परियोजना के लिए काटे जाएंगे, वह काफी पुराने और मजबूत पेड़ हैं. उन्हें नहीं काटा जाना चाहिए. सरकार को आर्थिक विकास के नाम पर पर्यावरण का नुकसान करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.


कोर्ट ने बनाई 5 सदस्यीय कमिटी


सुप्रीम कोर्ट ने पुराने पेड़ों की कीमत का आकलन करने के लिए 5 पर्यावरणविदों की एक कमिटी बनाई थी. सोहम पांड्या, निशिकांत मुखर्जी, सुनीता नारायण, बिकाश कुमार माजी और निरंजिता मित्रा की इस कमिटी ने कोर्ट को बताया है कि एक पेड़ साल भर में जितना ऑक्सीजन देता है, उसकी कीमत 45 हज़ार रुपए होती है. पेड़ के चलते ज़मीन को जो पोषण मिलता है, जो कंपोस्ट खाद तैयार होती है तो उसकी सालाना उत्पादकता 75 हज़ार रुपए है. इस हिसाब से एक पुराने और मजबूत पेड़, जिसकी आयु 100 साल बाकी है, की कीमत कम से कम 75 लाख रुपए होती है.


बन सकती है नई कमिटी


चीफ जस्टिस एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच ने आज के कहा कि मामले में यह देखने की भी जरूरत है कि किस तरह के पेड़ों को नहीं काटा जाना चाहिए. कितनी उम्र के पेड़ इतने उपयोगी हो जाते हैं कि उन्हें बिल्कुल नहीं काटना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि इस मसले पर भी एक विशेषज्ञ समिति से रिपोर्ट ली जानी चाहिए.  इससे भविष्य के लिए दिशानिर्देश बनाने में आसानी होगी.


सरकार की अधिसूचना पर रोक


कोर्ट ने आज केंद्र सरकार के उस नोटिफिकेशन पर भी रोक लगा दी,जिसमें यह कहा गया था कि 100 किलोमीटर से कम लंबाई की सड़क परियोजनाओं के निर्माण के लिए पेड़ों को काटने से पहले पर्यावरण मंजूरी लेना जरूरी नहीं होगा. कोर्ट ने कहा, "बात सड़क की लंबाई की नहीं है. अगर इस नीति को जारी रहने दिया गया तो इसका दूरगामी बुरा सर हो सकता है." आज पश्चिम बंगाल की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने 5 ओवरब्रिज परियोजना का काम बाधित होने पर आपत्ति जताई. लेकिन कोर्ट ने फिलहाल इस मसले पर कुछ नहीं कहा.


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