Supreme Court on Child Adoption: बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया सरल बनाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है. याचिकाकर्ता का कहना था कि देश में लगभग 3 करोड़ अनाथ बच्चे हैं और करोड़ों निसंतान दंपति हैं. लेकिन कानूनी जटिलताओं के चलते हर साल लगभग 4,000 बच्चे गोद लिए जाते हैं.
मामले में याचिका दाखिल करने वाली संस्था 'टेम्पल ऑफ हीलिंग' की तरफ से उसके सचिव पीयूष सक्सेना ने कोर्ट में पक्ष रखा. उनका कहना था कि बहुत से लोग हैं जो अशिक्षित हैं या कम शिक्षित हैं. देश में गोद लेने के लेने के नियम इतने जटिल हैं कि लोग उसे समझ ही नहीं पाते. अगर लोग अपने निकट संबंधी के बच्चे को भी गोद लेना चाहें, तो उसमें भी तमाम कानूनी अड़चनें डाल दी जाती हैं.
सक्सेना ने आगे कहा कि भारत में गोद देने की प्रक्रिया CARA (Central Adoption Resource Authority) के ज़रिए होती है. यह केंद्रीय महिला और बाल कल्याण मंत्रालय के तहत आता है. जबकि ऐसे मामलों में हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम (Hindu Adoptions and Maintainance Act, 1956) लागू होता है. इस कानून को सरल बनाना केंद्रीय विधि और न्याय मंत्रालय के अंतर्गत है. इसलिए, कोर्ट केंद्र सरकार को नोटिस जारी करे.
मामले को सुनते हुए जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और सूर्यकांत की बेंच ने आशंका जताई कि नियमों में ढील देने का नुकसान हो सकता है. इसका जवाब देते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि बच्चा गोद लेने की कुछ घटनाओं के गलत निकल जाने से सभी लोगों पर संदेह जताना सही नहीं है. अधिकांश लोग ईमानदार और अपना कर्तव्य निभाने वाले हैं. लाखों बेऔलाद माताओं की पीड़ा को समझा जाना चाहिए. प्रक्रिया सरल बनाना बच्चों और निसंतान लोगों के हित में है.
सुनवाई के दौरान जजों ने याचिकाकर्ता के कॉरपोरेट सेक्टर से जुड़े होने पर भी सवाल उठाए. इसका नवाब देते हुए पीयूष सक्सेना ने बताया कि वह मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज में बड़े पद पर काम करते हैं. लेकिन उनकी संस्था 'टेम्पल ऑफ हीलिंग' का उससे कोई संबंध नहीं है. यह संस्था लोगों को निशुल्क प्राकृतिक चिकित्सा उपलब्ध करवाती है. जजों ने थोड़ी देर की सुनवाई के बाद मामले पर नोटिस जारी कर दिया.