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‘अगर कोई रेल की पटरी पर सो जाए तो उसे कौन बचा सकता है?’ औरंगाबाद दुर्घटना पर सुनवाई से मना करते हुए SC की टिप्पणी
औरंगाबाद दुर्घटना पर सुनवाई से मना करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है. शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर लोग रेल की पटरी पर सो जाएंगे तो उन्हें कोई कैसे बचा सकता है?
नई दिल्ली: औरंगाबाद में ट्रेन से कटकर 16 मजदूरों की मौत के मामले में संज्ञान लेने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. याचिकाकर्ता ने इसी तरह की दूसरी घटनाओं का भी हवाला दिया था. लेकिन कोर्ट ने कहा कि जो लोग सड़क पर निकल आए हैं उन्हें हम वापस नहीं भेज सकते. कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर लोग रेल की पटरी पर सो जाएंगे तो उन्हें भला कोई कैसे बचा सकता है?
मामले में याचिका दाखिल करने वाले वकील आलोक श्रीवास्तव ने पहले भी मजदूरों के पलायन पर याचिका दाखिल की थी. तब लॉकडाउन का शुरुआती दौर था और उनकी याचिका के बाद सरकार ने तेज कदम उठाते हुए पलायन रोक दिया था. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी थी कि अब सड़क पर कोई मजदूर नहीं है. उनके रहने और भोजन का उचित इंतजाम कर दिया गया है. इस जानकारी के बाद कोर्ट ने सुनवाई बंद कर दी थी.
आज याचिकाकर्ता ने जस्टिस एल नागेश्वर राव जस्टिस संजय किशन कौल और बी आर गवई की बेंच को बताया कि एक बार फिर पहले जैसी स्थिति बन गई है. सड़क पर निकले मजदूर दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं. इसलिए कोर्ट हर जिले के डीएम को अपने यहां से गुजर रहे मजदूरों की देखभाल करने का निर्देश दे. सरकार को उन्हें सुरक्षित घर पहुंच आने को कहे.
याचिकाकर्ता ने दलीलों की शुरुआत करते हुए औरंगाबाद की घटना का हवाला दिया. कहा कि 16 मजदूर मालगाड़ी से कट के मर गए. इस पर बेंच के सदस्य जस्टिस कौल ने कहा, “अगर लोग रेल की पटरी पर सो जाएंगे तो उन्हें कोई कैसे बचा सकता है?” याचिकाकर्ता ने इसके बाद मध्य प्रदेश के गुना में हुए सड़क हादसे का जिक्र किया, जिसमें ट्रक से अपने गांव लौट रहे 8 मजदूरों की मौत हो गई. जज ने कहा, “जो लोग सड़क पर आ गए हैं, उन्हें कोर्ट वापस नहीं भेज सकता.“
सुनवाई के दौरान मौजूद केंद्र सरकार के वकील सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “केंद्र और राज्य सरकारें मिल कर सभी मजदूरों को उनके गांव वापस भेजने के इंतजाम में लगी हैं. लेकिन बहुत सारे लोग अपनी बारी आने की प्रतीक्षा नहीं कर पा रहे हैं. वह बेचैन होकर सड़क पर चलने लगे हैं. हम उनके ऊपर किसी तरह का बल प्रयोग भी नहीं कर सकते. ऐसा करना और ज्यादा नुकसानदेह हो सकता है.“
याचिकाकर्ता एक बार फिर कोर्ट से मामले में आदेश जारी करने की गुहार की. लेकिन कोर्ट ने कहा, “यह साफ दिख रहा है कि आप ने अखबार में छपी खबरों को उठाकर एक याचिका दाखिल कर दी है. इस पर कोर्ट के आदेश दे सकता है? इस तरह की घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण हैं. लेकिन कौन सड़क पर चल रहा है और कौन नहीं, इसकी निगरानी कर पाना कोर्ट के लिए संभव नहीं है. सरकार ने कई निर्देश जारी किये हैं. अगर हम आपको विशेष पास जारी कर दें तो क्या आप सुनिश्चित कर पाएंगे कि सरकार के सभी निर्देशों का पालन हो पा रहा है या नहीं?” इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने याचिका ओर कोई आदेश देने से मना कर दिया.
मुंबई के वकील की याचिका पर मांगा जवाब
हालांकि, प्रवासी मजदूरों को महाराष्ट्र से सुरक्षित यूपी भेजने से जुड़ी एक और याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, महाराष्ट्र और यूपी सरकार से जवाब मांग लिया. मुंबई के रहने वाले एक वकील सगीर अहमद खान की याचिका में कहा गया था कि मूल रूप से वह यूपी के संत कबीर नगर से हैं. अपने जिले के प्रवासी मज़दूरों को घर भेजने के लिए 25 लाख रु देना चाहते हैं. कई और लोग भी इसी तरह का सहयोग करना चाहते हैं. सरकारी इंतज़ाम मज़दूरों तक नहीं पहुंच रहे. मज़दूर ई-मेल पर सरकार को आवेदन नहीं भेज सकते. कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से इस अर्ज़ी पर 1 हफ्ते में जवाब देने के लिए कहा है.
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