'ट्रायल समय पर पूरा न होना अन्याय', सुप्रीम कोर्ट ने 7 साल से जेल में बंद आरोपी को दी जमानत
Supreme Court Decision: सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसले में टिप्पणी करते हुए कहा कि लंबे समय तक कैद का अंडरट्रायल कैदियों पर बुरा असर पड़ता है. अदालतों को ये ध्यान रखना चाहिए.
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने हाल के एक फैसले में अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि विशेष कानूनों से जुड़े मुकदमों का ट्रायल तेजी से पूरा किया जाना चाहिए. इसके साथ ही अदालतों को निर्देश दिया कि वे इस तथ्य के प्रति संवेदनशील हों कि लंबे समय तक कैद का अंडरट्रायल कैदियों पर बुरा असर पड़ता है. यदि ट्रायल समय पर पूरा नहीं होता है तो यह व्यक्ति के खिलाफ अन्याय है.
कोर्ट ने ये टिप्पणी मंगलवार (28 मार्च) एक आरोपी की जमानत याचिका पर फैसला सुनाते हुए की. आरोपी 7 सालों से जेल में एनडीपीएस एक्ट में बंद था. आरोपी मोहम्मद मुस्लिम उर्फ हुसैन को ज़मानत देते हुए जस्टिस एस रवींद्र भट और दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा, "जहां अभियुक्त सबसे कमजोर आर्थिक तबके से ताल्लुक रखता है, कैद के और भी हानिकारक प्रभाव होते हैं, जैसे आजीविका का नुकसान, कई मामलों में परिवारों के बिखरने के साथ पारिवारिक बंधनों का टूटना और समाज से अलगाव. इसलिए अदालतों को इन पहलुओं के प्रति संवेदनशील होना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि ट्रायल, विशेष रूप से ऐसे मामलों में जहां विशेष कानून कड़े प्रावधान लागू हों, तेजी से पूरे किए जाएं.''
क्या था मामला?
आरोपी को 2015 में दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था और उस पर गांजा सप्लाई करने वाले गिरोह का हिस्सा होने का आरोप था. हालांकि, उसके पास से नशीला पदार्थ जब्त नहीं किया गया था, लेकिन मामले की जांच कर रही दिल्ली पुलिस ने उस पर "ड्रग पेडलिंग नेटवर्क" का हिस्सा होने का आरोप लगाया.
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) विक्रमजीत बनर्जी ने एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 का हवाला दिया, जो जमानत देने पर कड़ी शर्तें लगाती है. यह प्रावधान मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत प्रदान की गई जमानत पर कड़ी शर्तों के समान है.
अभियोजन पक्ष की आपत्तियों को स्वीकार करने से इनकार करते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा, "जमानत देने के लिए कड़ी शर्तें लगाने वाले कानून जनहित में आवश्यक हो सकते हैं, फिर भी ट्रायल समय पर पूरा नहीं होता है तो व्यक्ति पर जो अन्याय होता है, उसकी कोई सीमा नहीं है."
सुप्रीम कोर्ट ने दी जमानत
वर्तमान मामले में अपीलकर्ता 7 साल और 4 महीने से हिरासत में था. हालांकि, मामले में चार्जशीट 2016 में दायर की गई थी, लेकिन 64 गवाहों में से 34 का परीक्षण किया जाना अभी भी बाकी था. पीठ ने कहा, "मुकदमे में अनुचित देरी के आधार पर जमानत देने को अधिनियम की धारा 37 द्वारा बाधा नहीं कहा जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने 436ए की अनिवार्यता को देखते हुए जो एनडीपीएस अधिनियम के तहत अपराधों पर भी लागू होता है, आरोपी को ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाई जाने वाली शर्तों के अधीन जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया.
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