नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना टीकाकरण पर केंद्र सरकार की नीति को मनमाना बताया है. कोर्ट ने कहा है कि केंद्र ने 45 से अधिक उम्र के लोगों को मुफ्त टीका दिया. लेकिन 18 से 44 आयु वर्ग के लोगों के लिए राज्य सरकार और निजी अस्पताल को खरीद के लिए कहा. यह नीति तर्क की कसौटी पर खरी नहीं उतरती. कोर्ट ने केंद्र से वैक्सीनेशन नीति पर स्पष्टता देने के लिए कहा है.
साथ ही राज्यों से भी पूछा है कि क्या वह नागरिकों को मुफ्त टीका लगवा रहे हैं? कोर्ट ने कहा है कि संविधान में तय व्यवस्था के मुताबिक नीति बनाना कार्यपालिका का अधिकार है. लेकिन अगर कोई नीति नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का हनन करती हो तो कोर्ट मूकदर्शक बना नहीं रह सकता.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, एल नागेश्वर राव और एस रविंद्र भाट ने 31 मई को हुई सुनवाई में भी केंद्र सरकार की टीकाकरण नीति पर सवाल उठाए थे. आज उसी सुनवाई का लिखित आदेश आया है. कोर्ट ने सरकार से जानकारी मांगी है कि जिन लोगों का टीकाकरण होना है, उनमें से कितने प्रतिशत को अब तक टीका लग चुका है? पहली और दूसरी डोज़ पाने वालों की संख्या क्या है? कोविशील्ड, कोवैक्सीन और स्पुतनिक पाने वालों की संख्या क्या है? शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों का आंकड़ा क्या है?
कोर्ट ने यह भी जानना चाहा है कि बचे हुए लोगों के टीकाकरण पर केंद्र की क्या योजना है? सुनवाई के दौरान केंद्र ने कहा था कि उसकी तरफ से 18 से 44 साल के लोगों के लिए टीका न देने से नागरिकों पर कोई असर नहीं पड़ रहा है. राज्य उन्हें मुफ्त वैक्सीन दे रहे हैं. इस पर कोर्ट ने राज्यों से जानकारी मांगी है कि क्या वह लोगों को मुफ्त टीका लगा रहे हैं?
इसके अलावा कोर्ट ने म्यूकोरमाइकोसिस के इलाज पर भी जवाब मांगा है. केंद्र से कहा है कि वह इस बारे में लिए गए कदम की जानकारी दे. 32 पन्ने के विस्तृत आदेश में कोर्ट ने सरकार की वैक्सीनेशन नीति पर कई सवाल उठाए हैं. यह भी कहा है कि केंद्र इस नीति को तय करने से जुड़े सभी दस्तावेज और फ़ाइल नोटिंग भी कोर्ट को सौंपे.
कोर्ट ने आदेश में इस बात पर भी सवाल उठाए हैं कि केंद्र ने वैक्सीन की अधिकतम कीमत तय करने के अपने वैधानिक अधिकार का उपयोग नहीं किया. कोर्ट ने कहा है कि ऐसा नहीं है कि सरकार ने वैक्सीन निर्माता कंपनियों को कोई आर्थिक मदद नहीं दी. दोनों कंपनियों को पैसे दिए गए थे. ऐसे में कीमत नियंत्रित होनी चाहिए. इसके अलावा भी आवश्यक दवा की कीमत नियंत्रित करने की कानूनी शक्ति केंद्र के पास है.
कोर्ट ने कोविन ऐप पर रजिस्ट्रेशन से ही 18 से 44 साल के लोगों के वैक्सीनेशन को भी गलत बताया है. कोर्ट ने कहा है कि कोविन ऐप पर रजिस्ट्रेशन की ज़रूरत से ग्रामीण क्षेत्र के और कमज़ोर लोगों के लिए समस्या है. भारत में अभी डिजिटल डिवाइड है. बड़ी संख्या में लोगों को इंटरनेट उपलब्ध नहीं.इसके अलावा कोविन ऐप पर स्लॉट बुक करने में भी लोगों को दिक्कत आ रही है. ऐप बनाने वालों ने नेत्रहीन लोगों के बारे में भी पूरी तरह विचार नहीं किया. कोर्ट ने सभी पहलुओं पर केंद्र और राज्यों से 2 हफ्ते में हलफनामा मांगा है. 30 जून को मामले लर अगली सुनवाई होगी.