Supreme Court On Collegium Row: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार(2 दिसंबर) को कहा कि मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली को कुछ ऐसे लोगों के बयानों के आधार पर बेपटरी नहीं किया जाना चाहिए जो दूसरों के कामकाज में ज्यादा दिलचस्पी रखते हों. इसके साथ ही उसने जोर दिया कि सर्वोच्च अदालत सबसे पारदर्शी संस्थानों में से एक है.


न्यायपालिका के भीतर विभाजन और न्यायाधीशों द्वारा संवैधानिक कोर्ट में जजों की नियुक्ति की मौजूदा व्यवस्था को लेकर सरकार के साथ बढ़ते विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह कुछ पूर्व न्यायाधीशों के बयानों पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता जो कभी उच्चतम कॉलेजियम के सदस्य थे और अब व्यवस्था के बारे में बोल रहे हैं.


'बना फैशन'


जस्टिस एम आर शाह और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की बेंच ने कहा, 'इन दिनों, (कॉलेजियम के) के उस समय के फैसलों पर टिप्पणी करना एक फैशन बन गया है, जब वे (पूर्व न्यायाधीश) कॉलेजियम का हिस्सा थे. हम उनकी टिप्पणियों पर कुछ भी नहीं कहना चाहते हैं.'


पीठ ने क्या कहा? 


पीठ ने कहा, 'मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली जो काम कर रही है, बेपटरी नहीं होनी चाहिए. कॉलेजियम किसी ऐसे व्यक्ति के आधार पर काम नहीं करता जो दूसरों के कामकाज में ज्यादा दिलचस्पी रखते हों. कॉलेजियम को अपने कर्तव्यों के अनुसार काम करने दें, हम सबसे पारदर्शी संस्थानों में से एक हैं.'


किस याचिका पर हुई सुनवाई? 


पीठ आरटीआई (सूचना का अधिकार) कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट के एक आदेश को चुनौती दी गई है. दिल्ली हाई कोर्ट ने उनकी उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें 12 दिसंबर, 2018 को हुई ‘सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम’ की बैठक के एजेंडे की मांग की गई थी, जब सुप्रीम कोर्ट में कुछ न्यायाधीशों की पदोन्नति को लेकर कथित रूप से कुछ निर्णय लिए गए थे.


भारद्वाज की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमबी लोकुर जो 2018 में कॉलेजियम का हिस्सा थे, ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि उस वर्ष 12 दिसंबर को कॉलेजियम की बैठक में लिए गए फैसलों को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया जाना चाहिए था.


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