(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
समय के अनुरूप व्याख्या होनी चाहिए, निजी संपत्ति अधिग्रहण से संबंधित संवैधानिक प्रावधान पर बोला सुप्रीम कोर्ट
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह भी कहा कि निजी और सार्वजनिक संपत्तियों के बीच बड़ा विरोधाभास नहीं हो सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (30 अप्रैल) को कहा कि ‘कोई भी निजी संपत्ति समुदाय का भौतिक संसाधन नहीं है’ और ‘प्रत्येक निजी संपत्ति समुदाय का भौतिक संसाधन है’’, ये दो अलग दृष्टिकोण हैं. शीर्ष अदालत ने कहा कि निजीकरण और राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए इसकी समकालीन व्याख्या किए जाने की आवश्यकता है.
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह भी कहा कि निजी और सार्वजनिक संपत्तियों के बीच बड़ा विरोधाभास नहीं हो सकता है.
पीठ ने कहा, ‘‘...हम आज भी निजी संपत्ति की रक्षा करते हैं, हम अभी भी व्यवसाय जारी रखने के अधिकार की रक्षा करते हैं. हम अभी भी इसे राष्ट्रीय एजेंडे के हिस्से के रूप में चाहते हैं. मैं इसे सरकार का एजेंडा नहीं कहता.’’
पीठ ने कहा कि सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो, 1990 से ही निजी क्षेत्र द्वारा निवेश को प्रोत्साहित करने की नीति रही है.
पीठ इस विवादास्पद कानूनी प्रश्न पर निर्णय लेने के लिए चौथे दिन दलीलें सुन रही थी कि क्या निजी संपत्तियों को भी संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत ‘‘समुदाय का भौतिक संसाधन’’ माना जा सकता है और परिणामस्वरूप, सरकार द्वारा इसे अपने अधिकार में लेकर ‘‘सार्वजनिक भलाई’’ के लिए नागरिकों के बीच वितरित किया जा सकता है.
पीठ ने पहले के एक फैसले में न्यायमूर्ति वी आर कृष्णा अय्यर (अब सेवानिवृत्त) द्वारा की गई टिप्पणियों को ‘‘थोड़ा अतिवादी’’ करार दिया.
पीठ ने कहा, ‘‘निजी और सार्वजनिक (संपत्तियों) के बीच कोई सख्त द्वंद्व नहीं हो सकता है. न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर की व्याख्या थोड़ा अतिवादी है. यह व्याख्या कहती है कि चूंकि समुदाय व्यक्तियों से बना है...इसलिए समुदाय के भौतिक संसाधनों का मतलब व्यक्ति का संसाधन और व्यक्ति के भौतिक संसाधन का मतलब समुदाय का संसाधन भी होगा.’’
पीठ में न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे.
मामले में बुधवार को भी दलीलें रखी जाएंगी.
मुंबई के प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन (पीओए) सहित 16 याचिकाकर्ता महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (म्हाडा) अधिनियम के अध्याय आठ-ए का विरोध कर रहे हैं. प्रावधान राज्य प्राधिकारियों को ऐसे भवनों और उस भूमि का अधिग्रहण करने का अधिकार देते हैं, जिससे शुल्क लिया जाता है, यदि उसके निवासियों में से 70 प्रतिशत निवासी उसके पुनर्निर्माण का अनुरोध करते हैं.
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