Supreme Court On CRPC: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) के तहत ऐसा कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं है जिसके तहत जांच एजेंसी के लिए अदालत की भाषा में चार्जशीट दाखिल करना आवश्यक हो.


कोर्ट की भाषा से संबंधित सीआरपीसी की धारा 272 के अनुसार, राज्य सरकार यह निर्धारित कर सकती है कि इस संहिता का प्रयोजन क्या होगा, उच्च न्यायालय के अलावा राज्य के प्रत्येक अदालत की भाषा क्या होगी. 


जस्टिस अभय एस ओका और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली सीबीआई की अपील स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया, जिसमें जांच एजेंसी को व्यापमं घोटाले के दो आरोपियों को चार्जशीट की एक प्रति हिंदी में प्रदान करने के लिए कहा गया था.


व्यापमं घोटाला क्या है?
व्यापमं या मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा बोर्ड घोटाला 2013 में सामने आया था, जिसमें अभ्यर्थियों ने अधिकारियों को रिश्वत दी थी और अपनी उत्तर पुस्तिकाएं अन्य लोगों से लिखवा कर परीक्षा में कदाचार किया था.


साल 1995 में शुरू हुए घोटाले की जांच 2015 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्रीय एजेंसी ने अपने हाथ में ली थी. इस गिरोह में कुछ नेता, वरिष्ठ अधिकारी और व्यवसायी शामिल थे.


सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
बेंच ने कहा, ‘‘धारा 173 के तहत अंतिम रिपोर्ट/आरोपपत्र की भाषा के बारे में, सीआरपीसी में ऐसा कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं है जिसके तहत जांच एजेंसी/अधिकारी को इसे अदालत की भाषा में दाखिल करना आवश्यक हो, जो सीआरपीसी की धारा 272 के अनुसार निर्धारित की गई हो.


यहां तक कि यदि इस तरह की जरूरत को धारा 173 में पढ़ा जाए, तो यदि अदालत की भाषा में रिपोर्ट नहीं है तो भी कार्यवाही प्रभावित नहीं होगी.’’उसने कहा कि किसी मामले में, यदि सीआरपीसी के माध्यम से विशेष रूप से अदालत की भाषा में कुछ किया जाना आवश्यक है, लेकिन वह किसी अन्य भाषा में की जाती है, तो भी कार्यवाही तब तक प्रभावित नहीं होगी जब तक कि यह स्थापित न हो जाए कि चूक के परिणामस्वरूप न्याय प्रदान नहीं किया जा सका है.


 पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर निर्णय करते समय कि क्या न्याय प्रदान करने में विफलता रही है, कोर्ट को इस बात पर विचार करना होगा कि क्या आपत्ति जल्द से जल्द उपलब्ध अवसर पर दर्ज कराई गई थी.


बेंच ने कहा, ‘‘इस प्रकार, राज्य सरकार की शक्ति सीआरपीसी के प्रयोजनों के लिए यह निर्धारित करने की है कि हाई कोर्ट के अलावा राज्य की अदालतों की की भाषा क्या होगी. धारा 272 के तहत शक्ति यह तय करने की शक्ति नहीं है कि जांच एजेंसियों या पुलिस जांच के रिकॉर्ड को बनाए रखने के प्रयोजनों के लिए किस भाषा का उपयोग किया जाएगा."


बेंच ने सीआरपीसी के प्रासंगिक प्रावधानों पर विचार किया और कहा कि धारा 207 के तहत, न्यायिक मजिस्ट्रेट का यह दायित्व है कि वह आरोपी को चार्जशीट और अन्य दस्तावेजों की एक प्रति प्रदान करे. 


पीठ ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के संबद्ध आदेश को रद्द कर दिया और व्यापमं घोटाले के आरोपियों नरोत्तम धाकड़ और सुनील सिंह को हिंदी में चार्जशीट की प्रति देने से इनकार करने संबंधी निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा. 


धाकड़ और सिंह दोनों ने दावा किया था कि वे सीबीआई के अंग्रेजी में दाखिल चार्जशीट को नहीं समझ पा रहे हैं. निचली अदालत ने कहा था कि दोनों शिक्षित हैं, उन्हें अंग्रेजी का ज्ञान है और उन्होंने अदालती दस्तावेजों पर अपने हस्ताक्षर भी उसी भाषा में किए हैं. 


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