Supreme Court On Demonetisation: सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी मामले की सुनवाई करते हुए बुधवार को बड़ी बात कही. कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले में सरकार के नीतिगत फैसलों की न्यायिक समीक्षा को लेकर ‘लक्ष्मण रेखा’ से पूरी तरह से वाकिफ है, लेकिन वह 2016 के नोटबंदी के फैसले की पड़ताल अवश्य करेगी, ताकि यह पता चल सके कि मामला केवल ‘एकेडमिक’ कवायद तो नहीं थी. शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए नौ नवम्बर, 2022 की तारीख मुकर्रर की है. याचिका में पीएम मोदी की अचानक से नोटबंदी की घोषणा के बाद 80% नोटों के बेकार करने की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.


अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने कहा कि जब तक नोटबंदी से संबंधित अधिनियम को उचित परिप्रेक्ष्य में चुनौती नहीं दी जाती, तब तक यह मुद्दा अनिवार्य रूप से अकादमिक ही रहेगा. शीर्ष अदालत ने कहा कि इस कवायद को अकादमिक या निष्फल घोषित करने के लिए मामले की पड़ताल जरूरी है, क्योंकि दोनों पक्ष सहमत होने योग्य नहीं हैं.


नोटबंदी कैसे की गई, इसकी पड़ताल होनी चाहिए


संविधान पीठ ने कहा, ‘‘इस पहलू का जवाब देने के लिए कि यह कवायद अकादमिक है या नहीं या न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर है, हमें इसकी सुनवाई करनी होगी. पीठ ने आगे कहा, हम हमेशा जानते हैं कि लक्ष्मण रेखा कहां है, लेकिन जिस तरह से इसे किया गया था, उसकी पड़ताल की जानी चाहिए. हमें यह तय करने के लिए वकील की दलील को सुनना होगा.’’


कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ₹ 500 और ₹ 1,000 के नोटों पर प्रतिबंध लगाने के फैसले के बारे में जवाब देने के लिए अपनी फाइलों को तैयार रखे. सरकार को इस बारे में जवाब देना होगा कि सभी नोटों के 80 प्रतिशत से अधिक तब प्रचलन में थे, जब अचानक पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा देर शाम के किए गए संबोधन में नोटबंदी की घोषणा की गई. सरकार को इस मामले में जवाब देना होगा कि यह उपाय "भ्रष्टाचार विरोधी" था. इस बारे में केंद्र और रिजर्व बैंक दोनों अपने जवाब दाखिल करें.


इस प्रतिबंध के कुछ ही दिनों के भीतर ही कई लोगों ने अदालत में जाकर नोटों को बेकार करने की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया था, जब तक कि एक समय सीमा के भीतर आदान-प्रदान नहीं किया गया, लेकिन इस मुद्दे को लंबे समय तक सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं किया गया था. इसे पहली बार घोषणा के एक महीने बाद दिसंबर 2016 में पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ के पास भेजा गया था.


सरकार के जवाब पर लगाया प्रश्नचिह्न


केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अकादमिक मुद्दों पर अदालत का समय ‘‘बर्बाद’’ नहीं करना चाहिए. मेहता की इस दलील पर आपत्ति जताते हुए याचिकाकर्ता विवेक नारायण शर्मा की ओर से पेश हो रहे वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि वह ‘‘संवैधानिक पीठ के समय की बर्बादी’’ जैसे शब्दों से हैरान हैं, क्योंकि पिछली पीठ ने कहा था कि इन मामलों को एक संविधान पीठ के समक्ष रखा जाना चाहिए.


एक अन्य पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदंबरम ने कहा कि यह मुद्दा अकादमिक नहीं है और इसका फैसला शीर्ष अदालत को करना है. उन्होंने कहा कि इस तरह के विमुद्रीकरण के लिए संसद से एक अलग अधिनियम की आवश्यकता है.


नोटबंदी के बाद 2016 में दायर की गई थी याचिका


तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने 16 दिसंबर, 2016 को नोटबंदी के निर्णय की वैधता और अन्य मुद्दों से संबंधित प्रश्न पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ को भेज दिया था. तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने तब कहा था कि यह मानते हुए कि 2016 की अधिसूचना भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत वैध रूप से जारी की गई थी, लेकिन सवाल यह था कि क्या वह संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 के विपरीत थी? अनुच्छेद 300(ए) कहता है कि किसी भी व्यक्ति को कानूनी तौर पर सुरक्षित उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा.


नोटबंदी पर क्या कहता है कानून


पीठ ने एक मुद्दे का जिक्र करते हुए कहा था, ‘‘क्या बैंक खातों में जमा राशि से नकदी निकालने की सीमा का कानून में कोई आधार नहीं है और क्या यह अनुच्छेद 14,19 और 21 का उल्लंघन है?’’ वहीं, अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता प्रदान करता है, जबकि अनुच्छेद 19 भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित है और अनुच्छेद 21 जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा के मौलिक अधिकारों से संबंधित है.


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