Freedom of Speech: सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या कहें 'फ्री स्पीच' पर अहम टिप्पणी की है. अदालत का कहना है कि भले ही तथ्यों के आधार पर कोई रिपोर्ट गलत ही क्यों नहीं हो, फिर भी उसे लिखने वाले के खिलाफ आईपीसी की धारा 153ए के तहत दंडात्मक कार्रवाई नहीं हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि 'फ्री स्पीच' का मतलब मुकदमे के डर के बिना अपना दृष्टिकोण रखना है.
देश की शीर्ष अदालत ने ये भी कहा कि पत्रकारों को उनके जरिए लिखे गए आर्टिकल को लेकर विभिन्न समुदायों या समूहों के बीच दुश्मनी बढ़ावा देने के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. पिछले कुछ सालों में फ्री स्पीच एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है. मीडिया संस्थानों से लेकर राजनीतिक नेताओं तक के ऊपर उनके बयानों और रिपोर्ट्स को लेकर केस दर्ज हुए हैं, जिन्हें उन्होंने सीधे तौर पर फ्री स्पीच का उल्लंघन बताया है.
किस मामले पर हुई सुनवाई?
दरअसल, 'ए़डिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया' (EGI) के अध्यक्ष और उसकी फैक्ट-फाइंडिंग टीम के सदस्यों ने हाल ही में मणिपुर में मैती और कुकी समुदायों के बीच हुई हिंसा को लेकर एक रिपोर्ट पब्लिश की. इस रिपोर्ट को भड़काऊ बताते हुए उनके ऊपर एफआईआर दर्ज की गई है. सुप्रीम कोर्ट इस बात की सुनवाई कर रही है कि क्यों EGI के ऊपर एक भड़काऊ रिपोर्ट लिखने पर दर्ज एफआईआर को रद्द करना चाहिए.
शीर्ष अदालत ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने फ्री स्पीच और प्रेस फ्रीडम के महत्व लेकर बात की. अदालत का कहना था कि तथ्यात्मक रूप से गलत रिपोर्ट भी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153ए के तहत दंडनीय अपराध नहीं हो सकती है. धारा 153ए के तहत धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और सद्भाव बिगाड़ने पर कार्रवाई होती है. इसमें तीन साल तक की जेल भी हो सकती है. EGI के ऊपर मणिपुर के रहने वाले एक व्यक्ति ने केस दर्ज किया है.
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'वे अपना दृष्टिकोण रखने के हकदार हैं. यह सब कहां जा रहा है? ये सिर्फ एक रिपोर्ट (EGI की रिपोर्ट) है. धारा 153 के तहत कैसे कैसे बनाया जा सकता है? वे सही हो सकते हैं. वे गलत हो सकते हैं. लेकिन फ्री स्पीच का मतलब तो यही है.' पीठ ने कहा हर रोज सैकड़ों की संख्या में रिपोर्ट्स पब्लिश होती हैं, जो तथ्यों के आधार पर गलत हैं, क्या सभी पत्रकारों पर धारा 153ए के तहत केस होगा. किसी आर्टिकल में गलत बयान देना धारा 153ए के तहत अपराध नहीं है.
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