सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (28 अगस्त, 2024) को उन लाखों कर्मचारियों को राहत दी है, जिनकी अनुसूचित जाति- अनुसूचित जनजाति कोटे के तहत मिली सरकारी नौकरी पर तलवार लटक रही है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उन्हें बड़ी राहत दी है. इन लोगों को एससी-एसटी कोटे के तहत केंद्र सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में नौकरी मिली थी, लेकिन कर्नाटक सरकार ने उन समुदायों को एससी-एसटी कैटेगरी से बाहर कर दिया है, जिनसे ये लोग ताल्लुक रखते हैं. इन कर्मचारियों को इस आधार पर नौकरी से निकाले जाने का खतरा था. कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश पर इन लोगों के एंप्लॉयर्स ने कारण बताओ नोटिस जारी करके इनसे ये भी पूछा था कि उनकी सेवाएं क्यों बंद नहीं की जा नी चाहिए.


जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के इस फैसले को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा कहा, 'हम मानते हैं कि प्रतिवादी बैंकों/उपक्रमों द्वारा अपीलकर्ताओं को कारण बताओ नोटिस जारी करने की प्रस्तावित कार्रवाई कायम नहीं रखी जा सकती और इसे रद्द किया जाता है.'


के. निर्मला समेत कोटेगारा अनुसूचित जाति और कुरुबा अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को उनके बैंकों की तरफ से नोटिस जारी करके जावब देने को कहा गया था. ये लोग केनरा बैंक, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के कर्मचारी हैं. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के नियोक्ताओं ने कहा था कि इन कर्मचारियों की जातियां और जनजातियां अब अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का हिस्सा नहीं हैं, इसलिए उन्हें उनकी नौकरियों में बने रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जो उन्होंने आरक्षित श्रेणियों के तहत मिली थी.


कई याचिकाओं पर निर्णय करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इनमें आम बात यह है कि क्या कोई व्यक्ति, जो कर्नाटक में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र के आधार पर किसी राष्ट्रीयकृत बैंक या भारत सरकार के उपक्रम में सेवा में शामिल हुआ हो, राज्य की ओर से उस जाति या जनजाति को सूची से हटा दिए जाने के बाद भी अपने पद पर बने रहने का हकदार होगा.


बेंच ने कहा, 'हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अपीलकर्ता 29 मार्च, 2003 के सरकारी परिपत्र के आधार पर अपनी सेवाओं की सुरक्षा के हकदार हैं. कर्नाटक सरकार द्वारा 29 मार्च, 2003 को जारी परिपत्र में विशेष रूप से विभिन्न जातियों को संरक्षण प्रदान किया गया, जिनमें वे जातियां भी शामिल थीं जिन्हें 11 मार्च, 2002 के पूर्व सरकारी परिपत्र में शामिल नहीं किया गया था.'


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वित्त मंत्रालय ने अगस्त 2005 के एक पत्र में संबंधित बैंक कर्मचारियों को सुरक्षा कवच प्रदान किया था और उन्हें विभागीय और आपराधिक कार्रवाई से बचाया था. आदेश में उस फैसले का हवाला देते हुए कहा गया कि राज्य सरकार को संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जातियों और जनजातियों की सूची में संशोधन या परिवर्तन करने का कोई अधिकार नहीं है. कोर्ट ने कहा कि इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि अपीलकर्ता कर्मचारियों ने कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करके अपने एससी और एसटी प्रमाण पत्र प्राप्त किए थे.


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