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नेता और टीवी चैनल हेट स्पीच के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार, जानिए सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कब-कब कहा

सुप्रीम कोर्ट कई बार नफरती भाषणों को लेकर तल्ख टिप्पणी कर चुका है. कोर्ट ने हर बार नेताओं के भाषण और टीवी चैनलों को नफरती भाषण फैलाने का जिम्मेदार ठहराया है.

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर हेट स्पीच मामले पर सुनवाई के दौरान धर्म की राजनीति पर सख्त टिप्पणी की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हेट स्पीच से छुटकारा पाने के लिए धर्म को राजनीति से अलग करने की जरुरत है. जब तक राजनीति को धर्म से अलग नहीं किया जाएगा तब तक हेट स्पीच से छुटकारा नहीं मिल पाएगा. मामले की सुनवाई जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना कर रहे थे. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो राजनेता हैं, वे धर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं और यही सबसे बड़ी परेशानी की वजह है. हमारे देश में धर्म और राजनीति जुड़े हए हैं. इसी से हेट स्पीच को बढ़ावा मिल रहा है.

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी की मिसाल देते हुए ये कहा कि वाजपेयी और नेहरू को याद कीजिए, जिन्हें सुनने के लिए लोग दूर-दराज से इकट्ठा होते थे. हम कहां जा रहे हैं ? जस्टिस केएम जोसेफ ने ये कहा कि हर रोज टीवी और सार्वजनिक मंचों पर नफरत फैलाने वाले बयान दिए जा रहे हैं. 

किस मामले पर हो रही थी सुनवाई  ? 

शाहीन अब्दुल्ला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए कहा था सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद महाराष्ट्र सरकार हिंदू संगठनों की हेट स्पीच पर लगाम लगाने में नाकामयाब रही है. याचिकाकर्ता ने महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाने की मांग की. 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछली सुनवाई में याचिकाकर्ता के वकील निजामुद्दीन पाशा ने कोर्ट में कहा कि महाराष्ट्र पुलिस को एक हिंदू संगठन के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया था, लेकिन इसके बावजूद अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. संगठन पिछले चार महीने में 50 से ज्यादा रैलियां आयोजित कर चुका है.

ऐसा पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं के बयान और टीवी चैनलों को फटकार लगाई है. पहले बात नेताओं के नफरती भाषण की करते हैं जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट टिप्पणी कर चुका है.

पांच महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं के बयान पर जताई थी आपत्ति 

नफरती बयानों यानी हेट स्पीच को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस केएम जोसफ और ह्रषिकेश रॉय ने पांच महीने पहले शाहीन अब्दुल्ला की याचिका पर तल्ख टिप्पणी की थी. शाहीन अबदुल्ला ने अपनी याचिका में भारत में मुस्लिमों को डराने-धमकाने के चलन को रोके जाने की मांग की थी. 

मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस केएम जोसफ ने कहा था कि यह 21वीं सदी है और हम धर्म के नाम पर कहां आ पहुंचे हैं? हम सभी एक धर्मनिरपेक्ष और सहिष्णु समाज होने के बजाय एक घृणा भरा समाज बना रहे हैं. सामाजिक तानाबाना बिखरता जा रहा है. आज हमने ईश्वर को इतना छोटा कर दिया है कि उसके नाम पर विवाद हो रहे हैं.

दिल्ली, यूपी और उत्तराखंड पुलिस को भेजा गया था नोटिस 

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, यूपी और उत्तराखंड पुलिस को नोटिस जारी करते हुए ऐसे भाषणों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया था. जस्टिस केएम जोसफ और ऋषिकेश रॉय की बेंच ने अपने आदेश में कहा था कि कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वह इस तरह के मामलो में हस्तक्षेप करे.

कौन से नेता के बयान को लेकर कोर्ट में चल रही थी सुनवाई 

मामला बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा के भाषण का था. सुनवाई में बेंच ने कहा था कि भाषण में कहा गया है - अगर जरूरत पड़ी, तो हम उनका गला काट देंगे. जस्टिस ह्रषिकेश रॉय ने ये कहा था कि एक देश जहां लोकतंत्र और धर्म तटस्थ है वहां पर ऐसे बयान बहुत परेशान करने वाले हैं.

एक नजर नेताओं के विवादित बयानों पर 

  • बीजेपी की राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा - टीवी डिबेट के दौरान पैगंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी की थी.
  • केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े - इस्लाम की तुलना आतंकवाद से की थी.
  • बिहार बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह-  बयान दिया था कि अगर देश का बंटवारा धर्म के आधार पर होता, तो आज गाली नहीं सुननी पड़ती.
  • बीजेपी के पूर्व सांसद विनय कटियार- अगर मुसलमानों ने गौ हत्या करना बंद नहीं की तो मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ती ही जाएंगी.
  • बता दें कि बीजेपी ने 38 नेताओं को बयानों को धार्मिक मान्यताओं को आहत करने वाली कैटेगरी में रखा है. 
  • आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन शौकत अली - सीधे हिंदुओं को निशाने पर लिया था, तीन तलाक को सही ठहराया था.
  • ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के नेता वारिस पठान-  इन्होंने बयान दिया था कि हम 15 करोड़ हैं और 100 करोड़ लोगों पर भारी हैं. 

जानिए सुप्रीम कोर्ट ने कब-कब न्यूज चैनलों को नफरत फैलाने का जरिया बताया 

सितंबर  2022 में सुप्रीम कोर्ट ने टीवी न्यूज चैनल पर होने वाली डिबेट को हेट स्पीच फैलाने का सबसे बड़ा जरिया बताया. जस्टिस केएम जोसफ और ऋषिकेश राय की बेंच ने टीवी डिबेट को रेगुलेट करने को लेकर दिशानिर्देश तैयार करने की मंशा पर केन्द्र से सवाल पूछा था.

कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जरूरी है, लेकिन TV पर अभद्र भाषा बोलने की आजादी नहीं दी जा सकती है. ऐसा करने वाले यूनाइटेड किंगडम के एक टीवी चैनल पर भारी जुर्माना लगाया गया था.

कोर्ट ने टीवी चैनलों की बहस की सामग्री पर अपनी नाराजगी का इजहार करते हुए केंद्र सरकार पर सवाल उठाया था और कहा था कि सरकार मूकदर्शन बन कर ये सब देख रही है और इस मामले को 'बहुत छोटा' आंक रही है. कोर्ट ने ये सवाल किया था कि क्या सरकार इस मामले पर कोई कानून लेकर आना चाहती है या नहीं ? 

जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की बेंच ने हेट स्पीच से भरे टॉक शो और रिपोर्ट टेलीकास्ट पर टीवी चैनलों को जमकर फटकार लगाई थी. बेंच ने ये कहा था कि यह एंकर की जिम्मेदारी है कि वह किसी को नफरत भरी भाषा बोलने से रोके. बेंच ने ये सवाल भी किया था कि  इस मामले में सरकार मूकदर्शक क्यों बनी हुई है, क्या यह एक मामूली मुद्दा है?

इससे पहले जब कोर्ट ने न्यूज चैनल को फटकारा

साल 2020 में जस्टिस चंद्रचूड़ ने सुदर्शन न्यूज चैनल के ''यूपीएससी जिहाद' कार्यक्रम पर रोक लगाने का आदेश दिया था. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि हमें इस मामले में दखल देना पड़ रहा है क्योंकि इस पर सरकार ने कोई एक्शन नहीं लिया है. ये एक सही वक्त हो सकता है जब हमें आत्म नियमन की तरफ बढ़ना चाहिए.

याद दिला दें कि सुदर्शन न्यूज के कार्यक्रम 'यूपीएसपी जिहाद के' प्रसारण पर हाई कोर्ट ने पहले ही रोक लगाई थी. इसके बाद 10 सितंबर साल 2020 को केंद्रीय प्रसारण मंत्रालय ने ही सुदर्शन न्यूज को कार्यक्रम के प्रसारण की इजाजत दी थी.

मंत्रालय का ये कहना था कि कार्यक्रम प्रसारित होने से पहले कार्यक्रम की स्क्रिप्ट नहीं माँगी जा सकती और ना ही उसके प्रसारण पर रोक लगायी जा सकती है. 

नफरती भाषण या हेट स्पीच की परिभाषा क्या है?

भारतीय दंड संहिता में हेट स्पीच की कोई साफ परिभाषा तय नहीं है. अब सरकार इस तरह की भाषा को परिभाषित करने के लिये सुधारों का सुझाव देने की दिशा में काम कर रही है. इसके लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय आपराधिक कानूनों पर सुधार समिति का गठन करने पर विचार कर रही है. 

हेट स्पीच को आमतौर पर भाषणों में वैसे शब्दों का इस्तेमाल करना है जिनका इरादा किसी विशेष समूह (जाति, धर्म ) के प्रति नफरत पैदा करना है. ये भाषण गैर-इरादतन या इरादतन दी जा सकती है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप हिंसा होने की संभावना होती है. 

देश के विधि आयोग की 267वीं रिपोर्ट में हेट स्पीच को नस्ल, जातीयता, लिंग, यौन, धार्मिक विश्वास के खिलाफ नफरत  को बढ़ावा देने के रूप में देखा गया है.

हेट स्पीच किन वजहों से दिया जा रहा है 

नफरती भाषण दिए जाने की पीछे लोगों की रूढ़िवादी सोच काफी हद तक जिम्मेदार मानी जा रही है. ऐसे लोग ये मानते हैं कि एक वर्ग या व्यक्तियों का समूह उनके लिए खतरा है या वो वर्ग उनसे नीचा है. इसलिए उनके अधिकार कम होने चाहिए . किसी एक विचारधारा की जिद भी हेट स्पीच को बढ़ावा दे रही है.

अभी 7 अलग-अलग कानूनों से हेट स्पीच देने वालों पर कार्रवाई हो रही

देश में हेटस्पीच से निपटने के लिए 7 तरह के कानून इस्तेमाल किया जाते हैं, लेकिन इनमें से किसी में भी हेटस्पीच को परिभाषित नहीं किया गया है. यही वजह है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म अपने यूजर्स को मनमानी भाषा बोलने से नहीं रोक रहे हैं. 

मौजूदा प्रावधान

1. भारतीय दंड संहिता

धारा 124ए (राजद्रोह): इस पर रोक लगाई जा चुकी है.
धारा 153ए: धर्म, नस्ल के आधार पर वैमनस्य
धारा 153बी: राष्ट्रीय एकता के खिलाफ दिया गया  बयान.
295ए और 298: धार्मिक भावनाओं को आहत करना.
धारा 505 (1) और (2) :अफवाह या नफरत को बढ़ावा देना.

2. जन प्रतिनिधि कानून

  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के गलत इस्तेमाल के दोषी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोकती है. 
  • आरपीए की धारा 123(3A) और 125: चुनावों के संदर्भ में जाति, धर्म, समुदाय, जाति या भाषा के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देने पर रोक लगाती है .

इन देशों में तय है हेटस्पीच की परिभाषा 

यूरोपीय देश: असहिष्णुता के आधार पर नस्लीय घृणा के खिलाफ गलत बयानबाजी या भड़काऊ बयान को जायज ठहराना हेटस्पीच माना जाता है. 

अमेरिका: यहां पर संविधान का पहला संशोधन ही संसद को मुक्त अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाने का कानून बनाने से रोकता है. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट का ये आदेश हैकि ‘घटिया अभिव्यक्ति’ पर अंकुश लगाने वाले कानून संवैधानिक माने जाएंगे. 

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