'सिर्फ जानवरों के लिए नहीं, इंसानों के बारे में भी सोचें', जिम कॉर्बेंट पार्क टाइगर रिजर्व को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कही ये बात?
उत्तराखंड सरकार ने कहा कि कुल 53 किलोमीटर लंबाई में से 45 किलोमीटर सड़क बफर जोन में आती है, जबकि शेष मुख्य क्षेत्र में है.
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (27 नवंबर, 2024) को उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के मुख्य क्षेत्र में निजी बसों के संचालन के मुद्दे पर संतुलित दृष्टिकोण अपनाने पर जोर दिया और कहा कि सिर्फ जानवरों के बारे में नहीं सोच सकते, इंसानों का भी ख्याल रखना होगा. यह सुनवाई टाइगर रिजर्व में निजी बसें चलाने की अनुमति के मामले में हो रही थी. केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) ने निजी बसों के संचालन के खिलाफ सिफारिश की है.
जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच मामले पर सुनवाई कर रही थी. बेंच ने कहा कि सीईसी को वहां रहने वाले लोगों के बारे में भी सोचना चाहिए. सीईसी का कहना है कि पाखरो-मोरेघट्टी-कालागढ़-रामनगर वन मार्ग पर निजी बसों के संचालन की अनुमति नहीं होनी चाहिए. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सीईसी से सवाल किया कि आप 24 सीटों वाली बस को जाने की इजाजत दे सकते हो, लेकिन आम लोगों के लिए बसों को अनुमति नहीं दे सकते हैं.
इस पर सुप्रीम कोर्ट, 'आपको (सीईसी) बहुत संतुलित दृष्टिकोण रखना होगा. आप सिर्फ जानवरों के बारे में नहीं सोच सकते. आपको इंसानों के बारे में भी थोड़ा सोचना होगा.' सुप्रीम कोर्ट ने 18 फरवरी, 2021 को राष्ट्रीय उद्यान की ओर से 23 दिसंबर, 2020 को जारी कार्यालय पत्र के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी थी, जिससे बसों को मुख्य क्षेत्र में चलाने की अनुमति मिल गई.
उत्तराखंड राज्य ने पहले कोर्ट को सूचित किया था कि सड़क बफर जोन और मुख्य क्षेत्र दोनों से होकर गुजरती है. राज्य सरकार ने कहा कि कुल 53 किलोमीटर लंबाई में से 45 किलोमीटर सड़क बफर जोन में आती है, जबकि शेष मुख्य क्षेत्र में है. बफर जोन मुख्य क्षेत्र के आसपास का इलाका होता है जहां प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग, अनुसंधान, विकास, पर्यावरण शिक्षा और विनियमित पर्यटन जैसी कम प्रभाव वाली गतिविधियां की जाती हैं.
बुधवार को सुनवाई के दौरान न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे सीनियर एडवोकेट के. परमेश्वर ने कहा कि सीईसी ने मामले में अपनी रिपोर्ट दाखिल कर दी है. उत्तराखंड की ओर से पेश वकील ने कहा कि वहां 1986 से 18 सीटों वाली बस चल रही है और यह स्थानीय लोगों की सुविधा के लिए है. के. परमेश्वर ने कहा कि सड़क पर कोई आपत्ति नहीं है और केवल वाणिज्यिक बस सेवा का विरोध किया जा रहा है.
बेंच ने पूछा, 'श्रीमान परमेश्वर, जरा व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाइए. आप मुख्य क्षेत्रों में जाने के लिए 24 सीटों वाली कैंटर बस रख सकते हैं, लेकिन वहां रहने वाले लोगों के लिए 18 सीटों वाली बस नहीं?' सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि यदि आपत्ति निजी संचालकों की बसों के संचालन से संबंधित है, तो वह उस मार्ग पर राज्य बस चलाने का निर्देश दे सकता है. बेंच ने राज्य और केंद्र की ओर से उपस्थित वकीलों को सीईसी रिपोर्ट की प्रतियां उपलब्ध कराने का निर्देश दिया और उन्हें जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया, जिसके बाद अगली सुनवाई होगी.