सुप्रीम कोर्ट ने आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए कर्नाटक हाईकोर्ट के जज जस्टिस वी. श्रीशानंद के खिलाफ बुधवार (25 सितंबर, 2024) कार्यवाही बंद कर दी. इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि इस मामले को और नहीं खींचा जाना चाहिए क्योंकि इसके और भी प्रभाव हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि जस्टिस वी. श्रीशानंद माफी मांग चुके हैं इसलिए मैटर को और नहीं खींचना चाहिए.


मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud), जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस भूषण रामाकृष्णन, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की बेंच ने इस मामले में कार्यवाही बंद करने का फैसला सुनाया. जस्टिस वी. श्रीशानंद ने अपनी टिप्पणियों के लिए वहां ओपन कोर्ट में 21 सितंबर को माफी मांगी थी. सुप्रीम कोर्ट ने जब मामले पर स्वत: संज्ञान लिया था तो कोर्ट ने मामले को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार की रिपोर्ट अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमाणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को सौंप दी थी.


एसजी तुषार मेहता ने क्यों कहा- बंद कर दें कार्यवाही
एसजी तुषार मेहता ने कहा, 'मैंने खुद क्लिपिंग देखी है. मैं सोच रहा था कि अगर यह कोर्ट में न होकर चैंबर में हुआ होता तो. मैंने कर्नाटक कोर्ट के सदस्यों से बात की है, अगर यह बड़ा मुद्दा बना तो इसके कई और दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं.' उन्होंने कहा कि जस्टिस श्रीशानंद अपनी टिप्पणियों के लिए माफी मांग चुके हैं इसलिए मामले को न ही खींचा जाए तो ठीक है. कई बार हम कुछ कह देते हैं, लेकिन अब हम सब जनता की नजरों में हैं. 


जस्टिस श्रीशानंद की माफी पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
रजिस्ट्रार रिपोर्ट में जस्टिस श्रीशानंद की माफी को भी शामिल किया गया था. बेंच ने कहा कि जज ने अपनी माफी में कहा कि उन्होंने जो टिप्पणी की वह समाजिक संदर्भ से हटकर थी. उनकी टिप्पणी किसी व्यक्ति या समाज के किसी सेक्शन को दुख पहुंचाने के लिए नहीं थी. किसी को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनकी बात से दुख हुआ है तो वह उसके लिए माफी मांगते हैं. बेंच ने कहा कि ओपन कोर्ट में हाईकोर्ट के जज की ओर से मांगी गई माफी को ध्यान में रखते हुए हम न्याय के हित और न्याय की गरिमा के लिए कार्यवाही को आगे नहीं बढ़ाने पर विचार करते हैं.


मामले पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
सीजेआई ने कहा, 'हम भारत के किसी भी हिस्से को पाकिस्तान की तरह नहीं बता सकते.' बेंच ने कहा कि अदालतों को सतर्क रहना चाहिए कि न्यायिक प्रक्रियाओं के दौरान ऐसी टिप्पणियां न की जाए, जिन्हें स्त्रीद्वेषी या समाज के किसी भी वर्ग के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त माना जाए. बेंच ने कहा कि कार्यवाही के दौरान आकस्मिक टिप्पणियां व्यक्तिगत पूर्वाग्रह को प्रतिबिंबित कर सकती हैं, खासकर जब उन्हें लैंगिकता या समुदाय के खिलाफ माना जाए.


सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में अदालत की कार्यवाही के दौरान एक महिला वकील के खिलाफ टिप्पणियों और एक अन्य मामले में बेंगलुरु में मुस्लिम बहुल एक इलाके को मिनी पाकिस्तान कहने को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट के जज की विवादित और आपत्तिजनक टिप्पणियों पर 20 सितंबर को स्वत: संज्ञान लिया था.


सोशल मीडिया पर आए वीडियो क्लिप में जस्टिस श्रीशानंद को एक महिला वकील को मामले की सुनवाई के दौरान हस्तक्षेप करने के लिए फटकार लगाते और कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियां करते हुए देखा गया था. उन्होंने एक मकान के मालिक और किरायेदार के बीच विवाद से जुड़े एक अन्य मामले में बेंगलुरु में मुस्लिम बहुल एक इलाके को मिनी पाकिस्तान बता दिया था.


कोर्ट ने  जस्टिस वी. श्रीशानंद ने सुनवाई के दौरान बेंगलुरु के एक मुस्लिम बहुल इलाके को मिनी पाकिस्तान कहकर संबोधित किया था. सुप्रीम कोर्ट ने  आपत्तिजनक टिप्पणियों पर स्वत: संज्ञान लिया था. हालांकि, कोर्ट ने जस्टिस वी. श्रीशानंद की ओर से माफी मांगने के बाद कोर्ट ने उनके खिलाफ कार्यवाही बंद करने का फैसला किया है.


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