सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में सरकारी स्कूलों की स्थिति पर एक गैर सरकारी संगठन (NGO) की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है. मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने एनजीओ सोशल ज्यूरिस्ट से मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का रुख करने को कहा.


पीठ ने कहा, 'याचिकाकर्ता संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट में जाने के लिए स्वतंत्र है. इसलिए याचिका को उपरोक्त शर्तों में स्वतंत्रता प्रदान करते हुए खारिज किया जाता है.' एनजीओ ने अपनी याचिका में राज्य के खजुराहो जिले के पांच स्कूलों की जर्जर इमारतों समेत खराब स्थिति को उजागर करने के लिए कई तस्वीरें संलग्न कीं.


सोशल ज्यूरिस्ट के सलाहकार वकील अशोक अग्रवाल ने अपनी जनहित याचिका में कहा, 'यह सम्मानपूर्वक बताया जाता है कि ये केवल नमूने हैं, जो स्पष्ट रूप से इंगित करते हैं कि मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूलों में नामांकित लाखों छात्र न केवल स्कूल की जर्जर इमारतों में पढ़ रहे हैं, बल्कि ऐसी इमारतों में भी पढ़ रहे हैं, जिनमें पर्याप्त डेस्क, बेंच और पर्याप्त पानी की आपूर्ति नहीं है.'


याचिका में कहा गया है कि सरकारी स्कूलों में अत्याधुनिक इमारतें होनी चाहिए. इसमें कहा गया है, 'किसी भी स्कूल में कोई सफाईकर्मी नहीं है, जिसके कारण सभी शौचालय में गंदगी की स्थिति हैं और स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है.'


याचिका में कहा गया है, 'मध्यप्रदेश सरकार को छात्रों के लिए शिक्षकों की तत्काल व्यवस्था करनी चाहिए.' याचिका में कहा गया है कि स्कूल की वर्दी सिंथेटिक सामग्री से बनी है, जिससे त्वचा संबंधी समस्याएं हो सकती हैं.


इसमें कहा गया है, 'मध्यप्रदेश सरकार छात्रों की शिक्षा के मानवीय और मौलिक अधिकारों का खुलेआम उल्लंघन कर रही है और इसलिए, इस पत्र के माध्यम से हम इस माननीय न्यायालय से वर्तमान याचिका को जनहित याचिका के रूप में मानने के लिए हस्तक्षेप करने और मध्यप्रदेश सरकार को आवश्यक निर्देश जारी करने का अनुरोध कर रहे हैं.'


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