नई दिल्ली: भ्रष्टाचार के दोषियों की पूरी संपत्ति जब्त करने की मांग पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. याचिका में यह मांग की गई थी कि भ्रष्टाचार के मामलों में उम्र कैद की सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून बनाना या उसमें बदलाव करना उसका काम नहीं है.


बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय की तरफ से दाखिल याचिका में यह कहा गया था कि भारत के भ्रष्टाचार निरोधक कानून बेहद कमजोर हैं. प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट, बेनामी संपत्ति एक्ट, प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट और फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट की अलग-अलग धाराओं में 3 साल से लेकर 7 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है. लेकिन किसी भी मामले में भ्रष्टाचारी पूरी संपत्ति जब्त किए जाने की व्यवस्था नहीं की गई है. ऐसे में भ्रष्टाचारी यही सोचता है कि उसे ज्यादा से ज्यादा कुछ साल जेल में बिताना होगा. लेकिन भ्रष्टाचार से कमाई गई संपत्ति उसके और उसके परिवार के पास ही बनी रहेगी. इसलिए, भ्रष्टाचारी की संपत्ति जब्त करने और उसे उम्र कैद की सजा देने का कानून होना चाहिए.


याचिका में क्या-क्या सुझाव दिए गए
याचिका में 100 रुपए से ऊपर के नोटों को वापस लिए जाने, 5000 से ऊपर के नकद लेनदेन पर रोक, 50000 से ऊपर की संपत्ति को आधार से लिंक करने जैसे सुझाव भी दिए गए थे. याचिका में यह भी बताया गया था कि करप्शन परसेप्शन इंडेक्स समेत तमाम अंतरराष्ट्रीय सूचियों में भारत का नंबर काफी पीछे रहता है. कई योजनाओं के बावजूद बेहद गरीबी और कष्ट में जी रही भारत की एक बड़ी आबादी के जीवन में सुधार नहीं हो पाता है. इस सब के पीछे वजह है भ्रष्टाचार.


आज यह मामला जस्टिस संजय किशन कौल, दिनेश माहेश्वरी और ऋषिकेश राय की बेंच में लगा. बेंच के अध्यक्ष जस्टिस कौल ने सुनवाई की शुरुआत में ही कहा, “यह किस तरह की याचिका है? इसमें कही गई बातें पढ़ने में अच्छी लग सकती हैं, लेकिन क्या याचिकाकर्ता को यह नहीं पता है कि कानून बनाना या उसमें बदलाव करना हमारा काम नहीं है?”


कोर्ट ने कहा- ऐसी याचिकाओं का मकसद प्रचार पाना अधिक
याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वकील वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायण ने कहा, "हम बहुत उम्मीद के साथ कोर्ट में आए हैं. अगर कोर्ट अपनी तरफ से सरकार को कोई निर्देश नहीं देना चाहता है, तो कम से कम लॉ कमीशन को मामले पर विचार कर कानून बनाने की सिफारिश करने के लिए कहे." इस पर जज ने कहा, “क्या आप खुद लॉ कमीशन गए? आपने सीधे कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी. हो सकता है याचिकाकर्ता ने कई अच्छे काम किए हों, लेकिन ऐसी याचिकाओं का मकसद प्रचार पाना अधिक होता है. हम याचिका पर विचार नहीं करेंगे."


कोर्ट के रुख को देखकर याचिकाकर्ता के वकील ने मामला वापस लेने की अनुमति मांगी. उन्होंने कहा कि वह लॉ कमीशन को ज्ञापन देंगे. कोर्ट ने इसकी अनुमति देते हुए मामले का निपटारा कर दिया.


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