नई दिल्ली: जजों और न्यायपालिका के खिलाफ ट्वीट को लेकर वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना मामले में सजा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भूषण के माफी मांगने से इनकार करने पर कहा कि माफी मांगने में क्या गलत है, क्या यह बहुत बुरा शब्द है?
सजा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लंबी बहस चली. प्रशांत भूषण के वकील राजीव धवन ने कहा कि मेरी ड्यूटी सिर्फ अपने क्लायंट (भूषण) के लिए नहीं, कोर्ट के लिए भी है. मैं वरिष्ठ वकील की हैसियत से बोल रहा हूँ. अगर आपको लगता है कि व्यक्ति संस्था के लिए किसी काम का नहीं है तो उसे सजा दें. अगर नहीं तो बतौर वकील किए गए उसके काम को देखें.
उन्होंने कहा कि संसद की आलोचना होती है लेकिन वह विशेषाधिकार की शक्ति का कम इस्तेमाल करते हैं. SC को भी भली मंशा से की आलोचना को उसी तरह लेना चाहिए. CJI बाइक पर बैठे थे, सबने देखा. उस पर टिप्पणी अवमानना न समझें. इतिहास 4 पूर्व CJI के बारे में फैसला लेगा. यह कहना अवमानना नहीं माना जाना चाहिए.
वकील की दलील के बाद जस्टिस ने कहा कि अगर हम सज़ा देना चाहते हों तो आपके विचार से क्या दे सकते हैं? धवन ने कहा आप चाहें तो उन्हें कुछ महीने के लिए यहां प्रैक्टिस से रोक सकते हैं. लेकिन मैं यही कहूंगा कि उन्हें सज़ा देकर शहीद मत बनाइए. कल्याण सिंह को भी जेल भेजा गया था. यह विवाद खत्म होना चाहिए. कोर्ट परिपक्वता दिखाए.
'जो बातें कही गई वह पीड़ादायक है'
फिर जज ने कहा कि उन्होंने जो बातें कहीं वह पीड़ादायक हैं. कोर्ट में जो लिखित जवाब देते हैं. उसे पहले मीडिया में जारी कर देते हैं. क्या इतने पुराने वकील का ऐसा करना सही है. वकील और राजनेता में अंतर होता है. क्या कोर्ट में लंबित मामले के हर पहलू को लेकर पहले मीडिया में जाना चाहिए.
जज ने कहा कि अगर वकील न्यायपालिका में लोगों के भरोसे को गिराने वाले बयान देंगे तो लोग कोर्ट क्यों आएंगे? हम लोग भी पहले वकील थे. आपसे अलग नहीं हैं. आलोचना का स्वागत है, लेकिन लोगों के विश्वास को डिगाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए. हर बात पर मीडिया में जाना सही नहीं. गरिमा का ख्याल रखना चाहिए.
इसके बाद अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि पूर्व जजों के बारे में जो कहा गया, उस पर फैसला उनको सुने बिना नहीं हो सकता. इसलिए इसे रहने देना चाहिए. भूषण बार-बार कह रहे हैं कि वह न्यायपालिका का सम्मान करते हैं. इसे ध्यान में रखना चाहिए. इसके बाद जज ने कहा जज अपने लिए कुछ नहीं कह सकते. व्यवस्था की रक्षा कौन करेगा? आपकी भी ज़िम्मेदारी है.
माफी मांगने में क्या हर्ज है?
जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि अगर आपने किसी को तकलीफ पहुंचाई है तो माफी मांगने में क्या हर्ज है. आपने अपने बयान में महात्मा गांधी की बात कही लेकिन माफी मांगने को तैयार नहीं हुए.
सुप्रीम कोर्ट ने 20 अगस्त को, भूषण को माफी मांगने से इनकार करने के उनके “अपमानजनक बयान” पर फिर से विचार करने और न्यायपालिका के खिलाफ उनके अवामाननाकारी ट्वीट के लिए “बिना शर्त माफी मांगने” के लिए 24 अगस्त का समय दिया था और उनकी इस दलील को अस्वीकार कर दिया था कि सजा की अवधि अन्य पीठ द्वारा तय की जाए.
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