स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया ने 2014 में दाखिल याचिका में इंजीनियरिंग और मेडिकल की तैयारी के लिए बड़े पैमाने पर खुले कोचिंग इंस्टिट्यूट का मसला उठाया था. याचिका में कहा गया था कि ये व्यवसाय अब 35 हज़ार करोड़ रुपए का उद्योग बन चुका है. लेकिन इसके ऊपर कोई सरकारी नियंत्रण नहीं है. कोचिंग इंस्टिट्यूट छात्रों के शोषण का अड्डा बन गए हैं.
याचिका में कहा गया था कि इंजीनियरिंग/मेडिकल की प्रवेश परीक्षा में सवाल पूछने का तरीका स्कूल की पढ़ाई से काफी अलग होता है. इसका फायदा निजी संस्थान उठाते हैं. ऊंची फ़ीस लेकर ये अभिभावकों का आर्थिक शोषण करते हैं. साथ ही मानसिक रूप से बच्चों को भारी दबाव में डाल देते हैं.
याचिका में कोचिंग संस्थानों पर पाबंदी लगाने या उनके लिए सरकारी नियम की मांग की गयी थी. कहा गया था कि ये इंस्टिट्यूट तरह-तरह के लुभावने विज्ञापन के ज़रिए किशोर उम्र के बच्चों को आकर्षित करते हैं. कई शहरों में तो कोचिंग का धंधा मुख्य कारोबार बन गया है. वहां से अक्सर मानसिक दबाव में बच्चों की आत्महत्या की खबरें आती हैं.
इसके जवाब में केंद्र सरकार की दलील थी कि कोचिंग संस्थानों पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती. अगर उनमें कुछ गलत हो रहा है तो उसकी रोकथाम राज्य सरकार को करनी चाहिए.
आज मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने भी माना कि कोचिंग इंस्टिट्यूट को बंद नहीं किया जा सकता. लेकिन कोर्ट ने कहा कि व्यवस्था में सुधार बहुत ज़रूरी है. जस्टिस आदर्श गोयल और उदय ललित की बेंच ने कहा कि सरकार को कोचिंग व्यवसाय को लेकर दिशानिर्देश बनाने चाहिए.
बेंच का मानना था कि स्कूल की पढ़ाई का महत्व बनाए रखना चाहिए. बेंच ने सुझाव दिया कि इंजीनियरिंग और मेडिकल में प्रवेश देते वक्त 12वीं की परीक्षा के रिजल्ट से 40 फीसदी नंबर जोड़े जाने चाहिए. जबकि 60 फीसदी नंबर एंट्रेंस एक्ज़ाम से लिए जाने चाहिए.
सरकार की तरफ से पेश वकील ने कहा कि सरकार जल्द ही राष्ट्रीय स्तर पर प्रवेश परीक्षा लेने के लिए एक एजेंसी का गठन करने जा रही है. परीक्षा से जुड़े नियम बनाते समय कोर्ट के सुझाव का भी ध्यान रखा जाएगा.