क्यों दे रहे थे अनुदान?
पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर संज्ञान लिया था. सुप्रीम कोर्ट ने बच्चियों को राहत देने के लिए कदम उठाने बात कही थी. आज इस मसले पर आगे की सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार पर नाराज़गी जताते हुए कहा, "आप बिना जांच-पड़ताल कैसे शेल्टर होम को इतने सालों से फंड दे रहे थे?"
जांच में दखल नहीं
जस्टिस मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये साफ किया कि उसका घटना की सीबीआई जांच में दखल देने का कोई इरादा नहीं है. उसकी सुनवाई पीड़ित बच्चियों को राहत पहुंचाने और भविष्य में ऐसी घटनाओं की रोकथाम तक सीमित है.
न्याय मित्र के सुझाव
मामले में एमिकस क्यूरी नियुक्त की गई वकील अपर्णा भट्ट ने सुझाव दिया:-
- बेंगलुरु का राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान (NIMHANS) सदमे से गुज़र रही बच्चियों की मानसिक स्थिति को देखे और राहत के लिए कदम उठाए.
- उनकी शारीरिक स्थिति को एम्स, पटना देखे और ज़रूरी इलाज करे.
- टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंस (TISS) बिहार सरकार के साथ मिलकर उनके पुनर्वास पर काम करे.
सुप्रीम कोर्ट ने तीनों संस्थानों और बिहार सरकार से इन सुझावों पर जवाब देने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 14 अगस्त को होगी.
घटनाओं पर चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में हो रही घटनाओं का भी ज़िक्र किया. जस्टिस लोकुर ने कहा- "बिहार के बाद यूपी के देवरिया में मिलती जुलती घटना सामने आई. मीडिया में मध्य प्रदेश में भी ऐसी घटनाओं का ज़िक्र है. हर तरफ लड़कियों का यौन शोषण हो रहा है. आखिर सरकारें क्या कर रही हैं?"
पहचान बताने पर रोक
इस टिप्पणी के बाद कोर्ट ने देश भर में नाबालिग बलात्कार पीड़िताओं के प्रिंट/इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इंटरव्यू पर रोक लगा दी. कहा, "सिर्फ केंद्रीय और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ऐसी बच्चियों से बात कर सकता है. इस दौरान भी प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक की मौजूदगी ज़रूरी है." कोर्ट ने ये भी साफ किया कि न तो मीडिया, न ही सोशल मीडिया में ऐसी बच्चियों की तस्वीर या कोई और ब्यौरा दिया जा सकता है.
फेसबुक पर नाम बताने पर नाराजगी
एमिकस क्यूरी ने बताया, "41 बच्चियों को वहां से निकाला गया. एक बच्ची गायब है. उन्होंने कोर्ट को जानकारी दी कि एक आरोपी की पत्नी ने फेसबुक पर पीड़ित लड़कियों के नाम उजागर किये हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा, "इस महिला की गिरफ्तारी होनी चाहिए. बिहार सरकार उसके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई करे."
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि एनजीओ की तरफ से चलने वाले शेल्टर होम की रोजाना निगरानी ज़रूरी है. उनमें सीसीटीवी कैमरे लगने चाहिए, ताकि उनकी गतिविधियों पर नज़र रखी जा सके.
दिल्ली महिला आयोग को भी पड़ी डांट
दिल्ली महिला आयोग ने इस मामले में पक्ष बनने की अर्ज़ी दी थी. आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल खुद भी कोर्ट में पहुंची थी. कोर्ट ने आयोग की तरफ से पेश वकील को फटकार लगाते हुए कहा, "क्या बिहार में महिला आयोग या बाल अधिकार आयोग नहीं है? बिहार की घटना से दिल्ली महिला आयोग का क्या संबंध है? आप अपनी राजनीति कोर्ट के बाहर रखें. इस संवेदनशील मसले का राजनीतिकरण करने की कोशिश न करें."
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