Supreme Court On Uttarakhand Tiger Reserve: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (10 जनवरी) को राजाजी और कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यानों में दो महत्वपूर्ण बाघ अभयारण्यों के लिए बाघ संरक्षण योजनाएं नहीं होने को लेकर उत्तराखंड सरकार पर नाराजगी जताई.


कोर्ट ने कहा कि यह जानकर हर कोई हैरान हो जाएगा की बाघों के संरक्षण के लिए बने राष्ट्रीय उद्यानों में बाघ संरक्षण की कोई योजना ही मौजूद नहीं है. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के शीर्ष वन अधिकारियों को गुरुवार (11 जनवरी) को अदालत में उपस्थित होने का निर्देश दिया.


कोर्ट ने क्या कहा?
न्यायमूर्ति बीआर गवई और संदीप मेहता की खंडपीठ ने कहा, “यह जानकर किसी को भी झटका लगेगा कि आपके पास बाघ प्रबंधन की कोई योजना नहीं है. ऐसा क्यों नहीं किया गया, इस पर जिम्मेदारी लें. अपने विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों - फॉरेस्ट फोर्स के प्रमुख (HoFF), मुख्य वन्यजीव वार्डन और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के किसी व्यक्ति को इस मामले में कोर्ट में हाजिर होना होगा." आज गुरुवार को मामले की सुनवाई होनी है.


बाघ अभ्यारण के अंदर अवैध निर्माण का आरोप
पर्यावरण कार्यकर्ता और वकील गौरव कुमार बंसल ने जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में बाघ सफारी के प्रस्ताव का विरोध करते हुए एक याचिका दायर की थी. इसमें बाघ अभयारण्यों के अंदर किए जा रहे अवैध निर्माणों की ओर इशारा किया गया था और कहा था कि राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में आज तक कोई बाघ संरक्षण योजना (टीसीपी) नहीं है. यह वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत आवश्यक है.


याचिका में उठाई गई चिंताओं का समर्थन करते हुए, न्याय मित्र के रूप में अदालत की सहायता कर रहे वकील के परमेश्वर ने कहा, "यह चौंकाने वाली बात है कि आज तक राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के पास बाघ संरक्षण योजना नहीं है." अधिनियम की धारा 38V के तहत, प्रत्येक अधिसूचित बाघ अभयारण्य में बाघ संरक्षण योजना होनी चाहिए. इसके लिए राज्य सरकार को एक टीसीपी तैयार करने की आवश्यकता है जिसमें कर्मचारी विकास और तैनाती योजना शामिल है.


कोर्ट ने और क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, "अगर ऐसी चीजों (टाइगर सफारी) की अनुमति देनी है, तो इसे एक बचाव केंद्र (बूढ़े, कमजोर जानवरों के लिए) के रूप में अनुमति दी जानी चाहिए, न कि चिड़ियाघर के रूप में."


पर्यावरण और वन मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट की सहायता करने वाली अदालत द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ संस्था, केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) ने पिछले साल जनवरी में बाघ सफारी परियोजनाओं का विरोध करते हुए एक रिपोर्ट दायर की थी. उसने जानवरों को पिंजरे में रखने के प्रस्ताव को वापस लेने की मांग की थी.


क्या है राज्य सरकार का तर्क
राज्य की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता एएनएस नाडकर्णी ने कहा, ''हम जो कर रहे हैं वह स्वीकृत योजना है. यह केंद्र सरकार ही थी जिसने इस योजना का प्रस्ताव रखा और इसे हमारे पास भेजा. वर्तमान परियोजना 80 फीसदी पूरी हो चुकी है और बड़ी मात्रा में सार्वजनिक धन पहले ही खर्च हो चुका है.


कॉर्बेट रिजर्व के दक्षिणी किनारे पर स्थित पखराऊ में 106 हेक्टेयर भूमि पर टाइगर सफारी की योजना बनाई गई है. राज्य सरकार ने पिछले साल कोर्ट को सूचित किया था कि यह क्षेत्र कॉर्बेट के कुल क्षेत्रफल का केवल 0.082 फीसदी और बाघ रिजर्व के बफर क्षेत्र का 0.22 फीसदी है.


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