नई दिल्ली:  क्या किसी को जमानत देते वक्त अदालत उस पर सोशल मीडिया के इस्तेमाल की रोक लगा सकती है? सुप्रीम कोर्ट इस पर विचार को तैयार हो गया है. कोर्ट ने इस मसले पर आज केंद्र और यूपी सरकार को नोटिस जारी किया.


याचिका अमरोहा के कांग्रेस नेता सचिन चौधरी की है. लॉकडाउन के दौरान बिना इजाज़त प्रेस कॉन्फ्रेंस करने, भड़काऊ बयानबाज़ी करने जैसे आरोपों में 11 अप्रैल को गिरफ्तार चौधरी को 20 मई को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जमानत पर रिहा किया.


हाई कोर्ट में राज्य सरकार के वकील ने चौधरी पर सोशल मीडिया के ज़रिए भी लोगों को गुमराह करने और समाज में विद्वेष फैलाने का आरोप लगाया. इसे देखते हुए कोर्ट ने ये शर्त लगा दी कि वो निचली अदालत में मुकदमा खत्म होने तक सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करेंगे.


बाद में हाई कोर्ट ने आदेश में मामूली रियायत देते हुए चौधरी के सोशल मीडिया पर रोक को डेढ़ साल का कर दिया. इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे कांग्रेस नेता की तरफ से वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद पेश हुए.


मामले की सुनवाई कर रही बेंच के अध्यक्ष चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े ने शुरू में कहा कि अगर किसी आरोपी के सोशल मीडिया के ज़रिए शरारत करने, मुकदमे पर असर डालने का अंदेशा हो तो कोर्ट इस तरह की शर्त लगा सकता है.


इस पर खुर्शीद ने बताया कि जिस मामले में गिरफ्तारी की गई थी, उसका ट्विटर या फेसबुक के इस्तेमाल से कोई लेना-देना नहीं है. इसलिए, ज़मानत देते समय इस तरह की शर्त लगाया जाना सही नहीं है.


आखिरकार सुप्रीम कोर्ट इस सवाल पर विचार करने के लिए तैयार हो गया कि कोई अदालत ज़मानत देते हुए आरोपी को सोशल मीडिया के इस्तेमाल से रोक सकती है या नहीं? कोर्ट ने कहा है कि वह कोशिश करेगा कि उसके आदेश से इस विषय पर स्पष्टता आ सके.


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