सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (2 दिसंबर, 2024) को उत्तर प्रदेश सरकार को टॉप नौकरशाहों की पत्नियों के समितियों के अध्यक्ष पदों पर रहने को लेकर बेहद अहम निर्देश दिया है. कोर्ट ने आपत्ति जताई है कि उत्तर प्रदेश के जिला मजिस्ट्रेट, सचिवों, जिलाधिकारियों और अन्य नौकरशाहों की पत्नियां सहकारी समितियों के अध्यक्ष पद पर नियुक्त हैं. सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम के उपनियमों के तहत ऐसा करना आवश्यक है. कोर्ट ने राज्य सरकार को नियमों में संशोधन करने का निर्देश देते हुए कहा कि औपनिवेशक मानसिकता को दर्शाने वाली प्रथा को खत्म करें.
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुईयां की बेंच मामले पर सुनवाई कर रही थी. यह मामला बुलंदशहर की 1957 से कार्यरत जिला महिला समिति से संबंधित विवाद से जुड़ा है, जिसमें समिति को सरकार की ओर से पट्टे पर दी गई जमीन के लिए बुलंदशहर के कार्यवाहक डीएम की पत्नी को अध्यक्ष बनाया जाना आवश्यक था क्योंकि सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम के उपनियमों में ऐसा प्रावधान है. समिति ने नियमों में संशोधन किया, जिसे पहले उप-रजिस्टरार ने रद्द कर दिया और फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी समिति की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया. तो अब समिति ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने इन नियमों को लेकर नाराजगी जताई है. सुप्रीम कोर्ट ने 6 मई को भी बुलंदशहर के जिलाधिकारी की पत्नी को जिले में पंजीकृत सोसाइटी की अध्यक्ष के रूप में काम करने के लिए अनिवार्य करने वाले अजीबोगरीब नियम को मंजूरी देने पर राज्य सरकार की खिंचाई की और इसे राज्य की सभी महिलाओं के लिए अपमानजनक करार दिया. कोर्ट ने कहा था, 'चाहे वह रेड क्रॉस सोसाइटी हो या बाल कल्याण समिति, हर जगह जिलाधिकारी की पत्नी ही अध्यक्ष होती हैं. ऐसा क्यों होना चाहिए?' सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से सवाल किया कि ऐसे व्यक्ति को नेतृत्व कौशल या सामुदायिक भावना के आधार पर नहीं बल्कि उनके वैवाहिक संबंध के आधार पर समाज का मुखिया बनाने के पीछे क्या कारण है.
सोमवार को बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एम नटराज की इस बात पर आपत्ति जताई कि राज्य को इन समितियों से प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, 'उन्हें इस औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर आने की जरूरत है. राज्य को इस तरह की समिति और सोसाइटी के लिए आदर्श नियम बनाने होंगे.'
बेंच ने कहा कि सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत, जिन सोसायटी को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ दिया गया था, उन्हें राज्य सरकार की ओर से लागू आदर्श नियमों का पालन करना अनिवार्य है. कोर्ट ने कहा, 'संशोधित प्रावधान यह सुनिश्चित करेगा कि उप-नियमों/नियमों या नीति में ऐसा कोई प्रावधान न हो जो राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों के परिवार के सदस्यों को ऐस पद देने की औपनिवेशिक मानसिकता को प्रतिबिंबित करता हो.'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे आदर्श उपनियमों का पालन न करने या उनकी अवहेलना करने की स्थिति में सोसाइटी अपनी वैधानिक दर्जा खो देगी. बुलंदशहर की जिला महिला समिति 1957 से कार्यरत है. समिति को विधवाओं, अनाथों और महिलाओं के अन्य वंचित वर्गों के कल्याण के लिए काम करने को लेकर जिला प्रशासन की ओर से नजूल भूमि (सरकार द्वारा पट्टे पर दी गई भूमि) दी गई थी.
मूल उपनियमों के अनुसार बुलंदशहर जिले के कार्यवाहक जिलाधिकारी की पत्नी को अध्यक्ष के रूप में कार्य करना आवश्यक था, लेकिन समिति ने 2022 में उपनियमों में संशोधन करने का प्रयास किया, जिससे जिलाधिकारी की पत्नी को अध्यक्ष के बजाय समिति का संरक्षक बना दिया गया. हालांकि, उप रजिस्ट्रार ने कई आधार पर संशोधनों को रद्द कर दिया, जिसे इलाहाबाद हाईकोर्ट में समिति ने चुनौती दी, लेकिन समिति की याचिका को खारिज कर दी गई.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समिति सामान्य रूप से काम करती रहेगी, लेकिन जिलाधिकारी की पत्नी को सहकारी समिति का पदाधिकारी बनने या उसके काम में दखल देने से रोक दिया गया. बेंच ने याचिकाकर्ता समिति को निर्देश दिया कि वह नजूल भूमि या किसी अन्य संपत्ति पर कोई भी अतिक्रमण या किसी तीसरे पक्ष के अधिकार का सृजन न करे, जो सरकार ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसे सौंपी हो.
यह भी पढें:-
त्रिपुरा में होटल मालिकों का बड़ा फैसला, बांगलादेशी नागरिकों के होटल्स में ठहरने पर लगा रोक