जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट बैन पर आया फैसला, रिव्यू ऑर्डर को सार्वजनिक करने का सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश
Jammu and Kashmir: पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि समीक्षा आदेशों को अलमारी में नहीं रखा जाना चाहिए. मई 2020 में कोर्ट ने केंद्र सरकार को विशेष समिति का गठन करने के लिए कहा था.
Jammu Kashmir Internet Shutdown: सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार (23 फरवरी) को जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट बैन और उस पर केंद्र सरकार के नियंत्रम को लेकर सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को निर्देश दिया कि वह केंद्र शासित प्रदेश में इंटरनेट सेवा बहाल करने को लेकर केंद्रीय गृह सचिव के तहत गठित विशेष समिति के समीक्षा आदेश को प्रकाशित करे. कोर्ट ने कहा कि समीक्षा महज औपचारिकता नहीं हो सकती. हालांकि जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टीस संदीप मेहता की पीठ ने स्पष्ट किया कि समिति में हुई चर्चा सार्वजनिक नहीं की जाएगी.
कोर्ट रिव्यू ऑर्डर को सार्वजनिक करने के लिए कहा
पीठ ने कहा, "इस बात को ध्यान में रखते हुए कि समीक्षा आदेश से भी पक्षकारों के अधिकार प्रभावित होंगे. हम अपनी प्रथम दृष्टया राय व्यक्त करते हैं कि भले ही समीक्षा को लेकर हुए विचार-विमर्श को प्रकाशित करना आवश्यक नहीं हो, समीक्षा में पारित आदेशों को प्रकाशित करने की आवश्यकता है.’’ जम्मू-कश्मीर प्रशासन का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हालांकि समीक्षा आदेश एक आंतरिक तंत्र है, लेकिन इसे प्रकाशित करने में कोई बाधा नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने मई 2020 में केंद्र से जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट पर प्रतिबंध की आवश्यकता का आकलन करने के लिए एक विशेष समिति गठित करने को कहा था. याचिकाकर्ता फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स की ओर से पेश वकील शादान फरासत ने कहा कि जिन राज्यों में कभी न कभी इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाए गए, उन्होंने समीक्षा आदेश प्रकाशित किए, लेकिन यह समझ से परे है कि केवल जम्मू और कश्मीर ऐसा क्यों नहीं कर रहा है.
पिछली सुनवाई में क्या हुआ?
यह मुद्दा फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स (एफएमपी) की ओर से कोर्ट में लाया गया था, जिसने जनवरी 2020 (अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ) और मई 2020 में पारित दो फैसलों में सुप्रीम कोर्ट की ओर से पारित निर्देशों का पालन करने में जम्मू-कश्मीर प्रशासन के इरादे पर आपत्ति जताई थी. कोर्ट ने 30 जनवरी को समीक्षा आदेश के प्रकाशन का समर्थन करते हुए दावा किया था कि इस तरह के आदेश अलमारी में रखे जाने के लिए नहीं होते हैं.
सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट को बताया कि 2020 के अनुराधा भसीन फैसले में केवल इंटरनेट को निलंबित करने वाले आदेशों को प्रकाशित करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा, “नियमों के अनुसार समीक्षा समिति को 5 कार्य दिवसों के भीतर बैठक करनी होगी. यह एक आंतरिक जांच थी और इसे प्रकाशित नहीं किया जाना था.''
(इनपुट पीटीआई से भी)
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