सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (9 सितंबर, 2024) को महाराष्ट्र सरकार को उस शख्स को कहीं और 24 एकड़ जमीन आवंटित करने का आदेश दिया है, जिसकी जमीन पर उसका 60 साल से अवैध कब्जा है. यह 24 एकड़ जमीन याचिकाकर्ता के पूर्वजों ने पुणे में खरीदी थी, जिस पर महाराष्ट्र ने कब्जा कर लिया. उसके बाद याचिकाकर्ता लगातार केस लड़ रहा है, साल 2004 में उसको वैकल्पिक जमीन आवंटित भी की गई, लेकिन वो वन विभाग की निकली. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से आदेश में कहा है कि जमीन पर अगर कोई अतिक्रमण है तो उसको पहले ही हटा लिया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने वन एवं राजस्व विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजेश कुमार की बिना शर्त माफी भी स्वीकार कर ली, जिनके खिलाफ कोर्ट ने 28 अगस्त को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा था कि विभाग द्वारा दायर हलफनामे में की गई अवमाननापूर्ण टिप्पणियों के लिए उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई क्यों न शुरू की जाए.
राजेश कुमार ने अपने हलफनामे में कहा कि राज्य सरकार मुआवजे के तौर पर 48.65 करोड़ रुपये देने को तैयार है. हालांकि, आवेदक ने जोर देकर कहा कि जमीन का बाजार मूल्य 250 करोड़ रुपये से अधिक है. इसके बाद आवेदक ने मुआवजे के तौर पर जमीन का एक और टुकड़ा मांगा. सुप्रीम कोर्ट ने पिछली बार आवेदक पर छोड़ दिया था कि वह फैसला करें कि जमीन और मुआवजा राशि में से वह क्या चाहते हैं.
जस्टिस भूषण रामाकृष्णन गवई और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने पुणे के कलेक्टर को निर्देश दिया कि वे सुनिश्चित करें कि 24 एकड़ भूमि की माप की जाए, सीमांकन किया जाए और इसका शांतिपूर्ण और मुक्त कब्जा आवेदक को सौंप दिया जाए. इसमें कहा गया है कि अगर भूमि पर अतिक्रमण है तो उसे आवेदक को सौंपे जाने से पहले हटा दिया जाएगा. बेंच ने राज्य प्राधिकरण द्वारा दायर शपथपत्र को स्वीकार कर लिया, जिसमें कहा गया था कि भूमि का शांतिपूर्ण और मुक्त कब्जा आवेदक को सौंप दिया जाएगा.
सुनवाई के दौरान जब वन भूमि का मुद्दा उठा तो पीठ ने टिप्पणी की, 'हम ऐसा कोई आदेश पारित नहीं करेंगे जिससे वन क्षेत्र प्रभावित होने की संभावना हो.' सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसकी हरित पीठ देश भर में हरित क्षेत्र और वृक्षों की रक्षा करने का प्रयास कर रही है. कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई जनवरी में तय की.
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने आवेदक को उचित मुआवजा न दिए जाने के लिए महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई थी. कोर्ट ने राज्य सरकार को चेतावनी दी थी कि अगर आवेदक को मुआवजा नहीं दिया गया तो कोर्ट राज्य की लाड़ली बहना जैसी योजनाएं बंद करने का आदेश देगा. 28 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के इस रुख पर विचार किया कि उसके पास 14 हेक्टेयर जमीन है, जिसमें से वह 24 एकड़, 38 गुंठा को आवेदक को आवंटित कर सकती है. कोर्ट ने सुनवाई में यह फैसला आवेदक पर छोड़ दिया कि वह जमीन और मुआवजा में से क्या चाहते हैं.
आवेदक ने बताया कि साल 1950 में उनके परिवार ने यह जमीन खरीदी थी, जब उस पर महाराष्ट्र सरकार ने कब्जा कर लिया तो उन्होंने केस कर दिया. यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और उन्हें जीत मिली. कोर्ट के आदेश पर जमीन वापस लेने की मांग की गई तो राज्य सरकार ने बताया कि वह जमीन रक्षा संस्थान को दे दी गई है. रक्षा संस्थान ने दावा किया कि वह विवाद में पक्षकार नहीं है इसलिए उसे बेदखल नहीं किया जा सकता.
इसके बाद आवेदक बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंचा और वैकल्पिक जमीन आवंटिन करने की मांग की. हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को आवेदक को 10 साल से कोई जमीन आवंटित नहीं किए जाने के लिए फटकार लगाई. साल 2004 में आवेदक को राज्य सरकार ने जमीन आवंटित की, लेकिन वह जमीन वन विभाग की निकली. इसके बाद आवेदक सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और कहा कि 50 सालों में तीन दौर की मुकदमेबाजी में जो वैकल्पिक जमीन आवंटित की गई, वो वन विभाग की है.