नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम आदेश में कहा है कि हर एक यात्री का समय 'कीमती' है और जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि ट्रेनों में देरी होने का कारण उसके कंट्रोल से बाहर था, रेलवे मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है. सुप्रीम कोर्ट ने एनसीडीआरसी के फैसले को कायम रखा जिसमें उत्तर पश्चिम रेलवे को 30 हजार रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया था. इसमें टैक्सी खर्च के लिए 15,000 रुपये, बुकिंग खर्च के लिए 10,000 रुपये और मानसिक पीड़ा व मुकदमे में खर्च के लिए 5,000 रुपये शामिल था.


जस्टिस एम आर शाह और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के आदेश के खिलाफ उत्तर पश्चिम रेलवे की अपील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. एनसीडीआरसी ने निचली उपभोक्ता अदालतों द्वारा पारित मुआवजे के आदेश को बरकरार रखा था जिसमें संजय शुक्ला की शिकायत को मंजूरी किया गया था. शुक्ला तीन अन्य लोगों के साथ 2016 में श्रीनगर के लिए फ्लाइट नहीं पकड़ पाए थे क्योंकि उनकी ट्रेन जम्मू तवी स्टेशन पर निर्धारित समय से चार घंटे की देरी से पहुंची थी. वे राजस्थान के अलवर में ट्रेन में सवार हुए थे.


सुप्रीम कोर्ट ने क्या टिप्पणी दी
कोर्ट इस तर्क से सहमत नहीं था कि ट्रेन के देर से चलने को रेलवे की सेवाओं में कमी नहीं कहा जा सकता है और कुछ नियमों में कहा गया है कि ट्रेन के देर से चलने की स्थिति में मुआवजे का भुगतान करने का कोई दायित्व नहीं होगा क्योंकि ट्रेनों के देर से चलने के कई कारण हो सकते हैं.


पीठ ने आदेश में कहा कि रेलवे को ट्रेन के देर से चलने की व्याख्या करने और यह साबित करने की जरूरत थी कि देरी ऐसे कारणों से हुई जिन पर उसका कंट्रोल नहीं था. लेकिन रेलवे ऐसा करने में विफल रहा. इस संबंध में कोई विवाद नहीं हो सकता है कि हर यात्री का समय कीमती है.


जानिए- अगर ट्रेन लेट होती है तो क्या है नियम
भारत में ट्रेन का लेट होना सामान्य बात है. लेकिन रेलवे के नियमों में ट्रेन के देरी होने पर मुआवजे का कोई जिक्र नहीं है. हालांकि ट्रेन लेट होने पर रिफंड का प्रावधान है. नियम के मुताबिक, अगर कोई ट्रेन तीन घंटे से ज्यादा लेट होती है तो यात्री टिकट कैसिंल कराकर पूरा रिफंड ले सकते हैं. ऐसे मामलों में रिफंड पाने के लिए यात्री को TDR फाइल करना होता. वहीं अगर आपको ट्रेन लेट होने की वजह से कोई बड़ा नुकसान हुआ है तो मुआवजा या हर्जाना लेने के लिए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) में शिकायत दर्ज करा सकते हैं. 


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