बिना नोटिस गिरा दिया पुश्तैनी मकान, सुप्रीम कोर्ट ने दिया मुआवजे का आदेश, कार्रवाई पर दिशानिर्देश भी किए तय
Supreme Court on Demolition: कोर्ट ने कहा कि सड़क के विस्तार से पहले सर्वे होना चाहिए. यह देखा जाना चहिए कि कितने विस्तार की ज़रूरत है. जिनका मकान विस्तार के दायरे में आ रहा है, उन्हें नोटिस देना चाहिए.
Supreme Court on Demolition: हाइवे को चौड़ा करने के नाम पर बिना नोटिस मकान गिराने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख दिखाया है. यूपी के महराजगंज में 2019 में मनोज टिबड़ेवाल नाम के शख्स का मकान गिराया गया था. अब कोर्ट ने यूपी सरकार से याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने को कहा है. इसके साथ ही, राज्य के चीफ सेक्रेटरी से पूरे मामले की विभागीय जांच और कार्रवाई के लिए कहा है.
कोर्ट ने यह भी कहा कि सड़क के विस्तार से पहले सर्वे होना चाहिए. यह देखा जाना चहिए कि उसकी मौजूदा चौड़ाई क्या है और उसमें कितने विस्तार की ज़रूरत है. जिनका मकान विस्तार के दायरे में आ रहा है, उन्हें नोटिस देना चाहिए. उनका पक्ष सुनने के बाद नियमों के मुताबिक कार्रवाई करनी चाहिए. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस आदेश की कॉपी सभी राज्यों को भेजने का भी निर्देश दिया. बेंच ने कहा कि सभी राज्य सड़क विस्तार से पहले उचित प्रक्रिया का पालन करें.
क्या था मामला?
महराजगंज के हमीद नगर के रहने वाले मनोज टिबड़ेवाल ने सुप्रीम कोर्ट को 2019 में ही चिट्ठी भेज कर अपने साथ हुई घटना की जानकारी दी थी. उन्होंने बताया था कि 13 सितंबर को नेशनल हाइवे निर्माण के दौरान उनका पुश्तैनी मकान गिरा दिया गया. इससे पहले न तो जमीन का अधिग्रहण हुआ, न ही उन्हें अतिक्रमण को लेकर कोई नोटिस दिया गया. अचानक मकान तोड़ दिया गया. यहां तक कि घर में रखा सामान हटाने तक का मौका नहीं दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने उनकी चिट्ठी पर संज्ञान लेते हुए 2020 में महाराज के डीएम को नोटिस जारी किया था.
3 जजों ने की सुनवाई
चीफ जस्टिस डी वाई, जस्टिस जे बी पारडीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने सुनवाई के दौरान पाया कि 2020 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी पूरी कार्रवाई को मनमाना बता चुका है. आयोग ने भी कार्रवाई और मुआवजे का निर्देश दिया था, लेकिन उसका अब तक पालन नहीं हुआ है. जजों ने कहा कि प्रशासन के हलफनामे के मुताबिक मकान का 3.7 वर्ग मीटर हिस्सा अतिक्रमण के दायरे में था. लेकिन उन्होंने उस हिस्से की बजाय पूरा मकान ही गिरा दिया. उससे पहले याचिकाकर्ता को न तो नोटिस दिया गया, न ही जवाब का मौका. अचानक मुनादी पीट कर मकान गिराए जाने की घोषणा की गई और कार्रवाई कर दी गई.
'1 महीने में आदेश का पालन हो'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुआवजे और विभागीय कार्रवाई के आदेश का पालन 1 महीने में किया जाए. विभागीय कार्रवाई के अलावा अगर ज़रूरी हो तो इस तरह से अवैध कार्रवाई करने वालों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा भी दर्ज हो. याचिकाकर्ता मनोज टिबड़ेवाल के अलावा भी जिन लोगों के मकान वहां गिराए गए हैं, राज्य सरकार उनकी जांच करे. यह देखा जाए कि उन मामलों में कानूनी प्रक्रिया का पालन हुआ या नहीं.
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