Supreme Court Rejected Foreigners Tribunal Order: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के आदेश को पलटते हुए एक बड़ा फैसला दिया. इसके तहत कोर्ट ने उस महिला के निर्वासन पर रोक लगा दी थी जिसे असम में फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल की ओर से विदेशी घोषित किया गया था.


भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मामले में केंद्र और असम सरकार, भारत के चुनाव आयोग और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के असम समन्वयक से तीन महीने के अंदर जवाब मांगा है.


गुवाहाटी हाई कोर्ट के फैसले को दी थी चुनौती


कोर्ट ने 17 मई को निर्देश दिया कि जब तक जवाब नहीं आ जाता तब तक गुवाहाटी हाई कोर्ट के 11 जनवरी 2024 के फैसले और आदेश के आधार पर याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठाया जाएगा. राजबंशी समुदाय से संबंधित याचिकाकर्ता माया बर्मन ने गुवाहाटी हाई कोर्ट के 11 जनवरी के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.


हाई कोर्ट ने 2019 में दिया था फैसला


हाई कोर्ट ने 2019 में फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के आदेश को सही बताया था, जिसमें अपने माता-पिता के पुराने मतदाता कार्ड सहित आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करने में विफल रहने के बाद उसे विदेशी घोषित कर दिया था. अपील में कहा गया है कि महिला के लिए दस्तावेज प्राप्त करना व्यावहारिक रूप से असंभव था क्योंकि वह अपनी शादी के बाद से असम में स्थानांतरित हो गई थी, जबकि वह मूलरूप से पश्चिम बंगाल के कूच बिहार की रहने वाली थी.


जरूरी दस्तावेज बाढ़ में नष्ट होने की कही थी बात


याचिका में कहा गया है कि उसके प्रवास के दौरान उन दस्तावेजों पर नजर रखना संभव नहीं था, क्योंकि उसके माता-पिता की पहले ही मौत हो चुकी है. तब दलील दी गई कि उसके माता-पिता, जो दोनों भारतीय नागरिक थे, से उनके संबंध को स्थापित करने वाले अन्य दस्तावेज बाढ़ में नष्ट हो गए हैं.


स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट को कर दिया था खारिज


पीड़िता का कहना है कि उसने भारतीय निवास और नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र जमा किया था, जिसे उच्च न्यायालय ने हेडमास्टर से जिरह नहीं किए जाने के आधार पर खारिज कर दिया था. दरअसल, हेडमास्टर को पश्चिम बंगाल से असम के लखीमपुर लाना उनके लिए संभव नहीं है.


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