Assembly Election Freebies: मध्य प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों की तरफ से चुनाव से पहले की जा रही घोषणाओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्य सरकारों, केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है. मुफ्त की घोषणाओं पर पहले से लंबित याचिका के साथ इस मामले को भी जोड़ा गया है. याचिकाकर्ता भट्टूलाल जैन का कहना था कि चुनावी लाभ के लिए बनाई जा रही योजनाओं से आखिरकार आम लोगों पर ही बोझ पड़ता है.
राजस्थान और मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले लोगों के लिए ऐसी योजनाओं का ऐलान किया जा रहा है, जिसमें उन्हें कैश दिया जाएगा. इसे 'फ्रीबीज' भी कहा जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इसके खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई की. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनाव से पहले सभी तरह के वादे किए जाते हैं. इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि यहां सिर्फ वादों की बात नहीं हो रही है. इसकी वजह से नेट वर्थ निगेटिव हो रहा है. नेता जिला जेल को बेचने तक की हद तक चले गए हैं.
मुफ्त के वादों पर पहले से लंबित याचिका के साथ सुना जाएगा मामला
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह भी कहा कि इस मामले को भी मुफ्त के वादों पर पहले से लंबित याचिका के साथ सुना जाएगा. राजनीतिक दलों की ओर से चुनाव जीतने के लिए की जाने वाली मुफ्त की घोषणाओं के खिलाफ वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पहले से लंबित है. नई याचिका मध्य प्रदेश के रहने वाले भट्टूलाल जैन ने दाखिल की है.
उनका कहना है कि दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री एक के बाद एक घोषणाएं करते जा रहे हैं. इनसे सरकारी खजाने पर हजारों करोड़ रुपए का बोझ बढ़ेगा. चुनावी लाभ के लिए बनाई जा रही योजनाओं का खर्च आखिरकार आम लोगों को ही उठाना पड़ता है. याचिकाकर्ता ने मध्य प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्री कार्यालय को भी पक्ष बनाया था. लेकिन कोर्ट ने उन्हें पक्षकारों की लिस्ट से हटाने को कहा. कोर्ट ने कहा कि नोटिस राज्य सरकार को भेजा जाना चाहिए, न कि मुख्यमंत्री को. इसके साथ ही कोर्ट ने रिजर्व बैंक को भी नोटिस जारी करने से मना कर दिया.
सुनवाई के दौरान क्या-क्या हुआ?
चीफ जस्टिस ने कहा कि आप यहां पर क्यों आए हैं? क्या आपकी हाईकोर्ट में सुनवाई नहीं हो रही थी? याचिकाकर्ता के वकील ने इस पर कहा कि राजस्थान समेत दो राज्य ऐसे हैं, जहां पर फ्रीबीज के मामले सामने आए हैं. इस पर चीफ जस्टिस ने पूछा कि आप मध्य प्रदेश को लेकर चिंतित हैं? सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि सार्वजनिक हित क्या है और क्या नहीं, इसके बीच एक रेखा खींचने की जरूरत है. सरकार को कैश बांटने की इजाजत देने से ज्यादा क्रूर कुछ भी नहीं है. चुनाव से ठीक छह महीने पहले ये सब शुरू हो जाती हैं.
वकील ने कहा कि आखिरकार इसका बोझ टैक्स देने वाली जनता को उठाना पड़ता है. मामले पर सुनवाई करने के बाद चीफ जस्टिस ने केंद्र सरकार, चुनाव आयोग, मध्य प्रदेश और राजस्थान को नोटिस जारी किया. उनसे इस नोटिस का जवाब चार हफ्तों में मांगा गया है. उन्हें अपने वकील के साथ आने को भी कहा गया है.
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