Supreme Court: क्या है पर्यावरण सुरक्षा का 'पिपलांत्री' मॉडल, जिसका मुरीद हुआ सुप्रीम कोर्ट
Supreme Court: पिपलांत्री मॉडल के तहत बेटी के जन्म पर 111 पेड़ लगाने की व्यवस्था है. सुप्रीम कोर्ट ने इसकी सराहना करते हुए कहा कि इससे इलाके में कन्या भ्रूण हत्या बंद हो गई.
Piplantri Model: सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण सुरक्षा के पिपलांत्री मॉडल की सराहना की है. गांव में हर बेटी के जन्म पर 111 पेड़ लगाने की इस व्यवस्था ने कभी सूखे रहे राजस्थान के गांव को हरा-भरा बना दिया है. कोर्ट ने इस मॉडल की तारीफ करते हुए राजस्थान सरकार से यह कहा कि वह ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद बागों को वन का दर्जा देकर उन्हें संरक्षित करे.
क्या है पिपलांत्री मॉडल?
पिपलांत्री राजसमंद जिले का एक गांव है. करीब 2 दशक पहले वहां के सरपंच ने गांव में हर बेटी के जन्म पर 111 पेड़ लगाने की व्यवस्था शुरू की. इसके साथ ही बेटी के जन्म पर गांव की तरफ से सामूहिक चंदे से 31 हजार रुपये का फिक्स्ड डिपॉजिट करवाने और लड़कियों की पढ़ाई को प्रोत्साहित करना भी इस मॉडल का हिस्सा है. अब इसका परिणाम यह निकला है कि गांव में बेटियों के जन्म पर खुशी का माहौल होता है. पूरा इलाका हरा-भरा हो गया है. वहां पशु-पक्षी भी रहने लगे हैं. भूजल का स्तर भी बहुत बेहतर हो गया है.
सुप्रीम कोर्ट में क्या था मामला?
जंगलों के संरक्षण से जुड़े मामले गोदावर्मन थिरुमलपाद बनाम भारत सरकार में सुप्रीम कोर्ट समय-समय पर निर्देश जारी करता रहता है. इसी मामले में एक आवेदन राजस्थान के कई इलाकों में ओरन, देव वन या रुंध कहलाने वाले पेड़ों के समूह को बचाने से जुड़ा था. इस आवेदन पर फैसला देते हुए कोर्ट ने राजस्थान सरकार से इस तरह के बागों की पहचान सैटेलाइट के जरिए करने और उन्हें सामुदायिक वन का दर्जा देकर संरक्षण देने के लिए कहा.
कोर्ट ने की तारीफ
मामले पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई, एसवीएन भट्टी और संदीप मेहता की बेंच ने पिपलांत्री मॉडल की चर्चा की. जस्टिस संदीप मेहता ने बेंच की तरफ से आदेश पढ़ते हुए कहा, "एक व्यक्ति की दूरदृष्टि कितना बदलाव ला सकती है, यह यहां देखने को मिलता है. जिस गांव का पर्यावरण अंधाधुंध खनन से कभी लगभग तबाह हो गया था, आज वह हरा-भरा है. आज वहां 14 लाख पेड़ लगाए जा चुके हैं. इलाके में कन्या भ्रूण हत्या बंद हो गई है. यह एक ऐसा आदर्श है, जिससे सबको प्रेरणा लेनी चाहिए." इसके साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि वह पूरे राज्य में सामुदायिक बागों की पहचान करे और उन्हें फॉरेस्ट प्रोटेक्शन एक्ट के तहत सुरक्षा दे.
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