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'आत्महत्या की और उकसाने का मुकदमा चला दिया... अदालतों की गलत प्रैक्टिस', सुप्रीम कोर्ट ने सुसाइड केस के आरोपियों के लिए कह दी बड़ी बात

सुसाइड केस के आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के 2017 के आदेश को चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करने के लिए उनकी याचिका खारिज कर दी थी.

सुप्रीम कोर्ट ने आत्महत्या के एक मामले में अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने से संबंधित मामलों में कानून के सही सिद्धांतों को समझने और लागू करने में अदालतों की असमर्थता के कारण अनावश्यक मुकदमों को बढ़ावा मिलता है. कोर्ट ने आत्महत्या के लिए कथित रूप से उकसाने के एक मामले में तीन आरोपियों के खिलाफ लखनऊ की एक अदालत में लंबित कार्यवाही को रद्द कर दिया.

न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि वह मृतक के परिवार के सदस्यों की भावनाओं से अनभिज्ञ नहीं है, जिन्होंने पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराई थी, लेकिन अंततः मामले को देखना और यह सुनिश्चित करना पुलिस और अदालत का काम है कि आरोपों का सामना कर रहे व्यक्तियों को अनावश्यक रूप से परेशान न किया जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने तीन अक्टूबर के अपने आदेश में कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने) के तहत अपराध दर्ज करने के लिए आवश्यक तत्व तभी पूरे होंगे, जब मृतक ने आरोपी के प्रत्यक्ष उकसावे के कारण आत्महत्या की हो. कोर्ट ने कहा कि इन दिनों चलन यह है कि अदालतें पूरी सुनवाई के बाद ही अपराध के पीछे की मंशा को समझ पाती हैं.

बेंच ने कहा, 'समस्या यह है कि अदालतें सिर्फ आत्महत्या के तथ्य को ही देखती हैं और इससे ज्यादा कुछ नहीं. हमारा मानना ​​है कि अदालतों की ऐसी समझ गलत है. यह सब अपराध और आरोप की प्रकृति पर निर्भर करता है.' बेंच ने कहा कि अदालतों को यह पता होना चाहिए कि आत्महत्या के लिए उकसाने से संबंधित कानून के सही सिद्धांतों को रिकॉर्ड में मौजूद तथ्यों के आधार पर कैसे लागू किया जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में कानून के सही सिद्धांतों को समझने और लागू करने में अदालतों की असमर्थता के कारण अनावश्यक मुकदमों को बढ़ावा मिलता है.' सुप्रीम कोर्ट ने तीन आरोपियों की ओर से दायर उस अपील पर अपना आदेश पारित किया जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के मार्च, 2017 के आदेश को चुनौती दी गई थी. आदेश में उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के अनुरोध संबंधी उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया था.

पीड़ित एक निजी फर्म का कर्मचारी था और 23 सालों से एक कंपनी में काम कर रहा था. रिकॉर्ड में यह बात सामने आई कि उस व्यक्ति ने नवंबर, 2006 में लखनऊ के एक होटल के कमरे में आत्महत्या कर ली थी और उसके बाद उसके भाई ने स्थानीय पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराई थी. पीड़ित ने लखनऊ में एक होटल के कमरे में सुसाइड किया था, जहां उसकी और उसके सहयोगियों की अपने सीनियर्स के साथ मीटिंग थी. होटल में पीड़ित के अन्य सहयोगी भी मौजूद थे. पीड़ित के भाई ने एफआईआर में तीन सीनियर्स पर उसे आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया है. सीनियर्स पर पीड़ित को अपमानित करने का आरोप लगाया गया. यह भी कहा गया कि सीनियर्स ने कंपनी के कुछ एंप्लॉइज से वॉलेंट्री रिटायरमेंट (VRS) लेने के लिए दबाव बनाया था. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उकसाने के लिए आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाना पूरी तरह से कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं होगा. हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हुए बेंच ने कहा कि अपीलकर्ताओं के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है.

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